Course Type | Course Code | No. Of Credits |
---|---|---|
Foundation Elective | SUS1HN332 | 4 |
Semester and Year Offered: winter semester
Course Coordinator and Team:
Email of course coordinator:
Pre-requisites:
- Does the course connect to, build on or overlap with any other courses offered in AUD? अंग्रेजी में पढ़ाए जाने वाले Indian and World Litrature कोर्स से इसकी समानता है। हिंदी साहित्य से यत्किंचित परिचित विद्यार्थियों का अन्य भाषाओं के साहित्य से परिचित कराने वाला यह कोर्स है। यह पाठ्यक्रम हिंदी आधार पाठ्यक्रम (HAP) और हिंदी साहित्य के इतिहास की रूपरेखा (HSIR) पढ़े हुए विद्यार्थियों का मानसिक क्षितिज विकसित करता है।
- Specific requirements on the part of students who can be admitted to this course: (Pre requisites; prior knowledge level; any others – please specify) None
- No. of students to be admitted (with justification if lower than usual cohort size is proposed): As per School Rules
- Course scheduling: (summer/winter course; semester-long course;half-semester course; workshop mode; seminar mode; any other – please specify)-
- Semester-long course, Monsoon Semester
- Proposed date of launch: How does the course link with the vision of AUD and the specific programme(s) where it is being offered? यह पाठ्यक्रम हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों को दुनिया भर के साहित्य तथा अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य से परिचित कराकर उनके विविधता के सहज स्वीकार की भावना पैदा करता है। इस तरह यह पाठ्यक्रम विविधता को पदानुक्रम के मुक़ाबले भिन्नता की भावना से देखने की सलाहियत देता है।
- Course Details:
Summary:
यह पाठ्यक्रम विद्यार्थियों को साहित्य की व्यापक दुनिया से तैयार कराने के लिए किया अगया अहै इसलिए स्वाभाविक रूप से इसमें साहित्य की विधाओं की विविधता तथा साहित्य को प्रभावित करने वाली विभिन्न विचारधाराओं की उपस्थिति और विश्व के जानांकिकीय भूगोल की विविधता को समेटा गया है। इसमें हिंदी के साथ जुड़ी हुई उर्दू तथा हिंदी और उर्दू की मुश्तरका ज़मीन को प्रतिबिम्बित करने वाले साहित्य को रखा अगया है। इस पाठ्यक्रम में विद्यार्थी हिंदी और उर्दू, दोनों के भीतर ऐसे साहित्य का परिचय हासिल करेंगें जिससे नवजागरण, विभाजन और स्वातंत्रयोत्तर मानव अस्तित्व की समस्यायों को समझ सकेंगे। साथ ही हिंदी उर्दू भाषी क्षेत्र के बाहर सम्पूर्ण भारतीय साहित्य की उपलब्धियों के साथ अपने परिचित साहित्य के ताने-बाने की उलझनों उर सुलझनों का परिचय भी उन्हें मिल सकेगा। इसके ज़रिए भारतीय समाज की विषमता से उत्पन्न विक्षोभ की अभिव्यक्तियों को भी समझने में विद्यार्थियों को आसानी होगी। भारत विकासशील देशों के उपनिवेशवाद विरोधी चेतना का अविभाज्य अंग है। अतः इस पाठ्यक्रम में तत्संबंधी साहित्य का भी परिचय कराने की चेष्टा की गयी है। विकासशील देशों का यह उपनिवेशवादविरोधी परिदृश्य सांस्कृतिक अभिव्यक्ति में बहुस्वरीयता लिए हुए है। पाठ्यक्रम में दिए गए पाठों के ज़रिए विद्यार्थी इस बहुस्वरीयता को पहचानेंगे। इस पाठ्यक्रम में सम्पूर्ण विश्व साहित्य में आधुनिकता की विडंबनाओं से परिचित कराने वाला साहित्य भी रखा गया है ताकि विद्यार्थी साहित्य की देशगत और कालगत विविधताओं के साथ ही उसके शाश्वत प्रश्नों का भी साक्षात कर सकें।
Objectives.
- विद्यार्थियों को हिन्दी क्षेत्र की मुश्तरका साहित्यिक तहजीब से वाकिफ कराना।
- भारतीय साहित्य की परिकल्पना की पड़ताल करना।
- उपनिवेशवाद विरोध की साहित्यिक अभिव्यक्तियों से परिचय और
- विश्वयुद्धोपरांत उपजे मानवीय संकट और आधुनिकता की आलोचना की साहित्यिक अभिव्यक्तियों की समझ विकसित करना।
Overall structure:
- Contents (brief note on each module; indicative reading list with core and supplementary readings)
माड्यूल-1:
हिंदी-उर्दू का मुश्तरका साहित्य
हमारे विद्यार्थियों के परिचित साहित्य की एक अनदेखी विशेषता है: उसकी मुश्तरका ज़मीन। यह ज़मीन केवल समन्वय पर ही आधारित नहीं है बल्कि इसमें हिंदी और उर्दू, दोनों ही भाषाओं की विशेषताएँ भी झलकती हैं। बोध के स्तर पर इस साहित्य का निर्माण उपनिवेशवाद विरोधी माहौल से होता है लेकिन फिर वह देश के विभाजन की भयंकर त्रासदी में बदलता है। विभाजन के उपरांत दोनों ही देश अपने-अपने तरह की विशेष समस्याओं से गुज़रते हैं जिनका प्रतिबिम्बन दोनों ही देशों के रचनाकारों की रचनाओं में हुआ है। माड्यूल में दिए गए पाठों के ज़रिए विद्यार्थी इसका परिचय प्राप्त कर सकें।
निर्धारित पाठ:
- टोबा टेक सिंह [सआदत हसन मंटो]
- तराना [फ़ैज़ अहमद फ़ैज़]
- अंधेर नगरी [भारतेंदु हरिश्चंद]
- नदी के द्वीप [अज्ञेय]
माड्यूल-2:
भारतीय साहित्य
विभाजन के उपरांत बचे हुए भारत में विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों ने अलग-अलग तरह से अपनी-अपनी भाषाई परम्परा को व्यापक प्रश्नों से जूझते हुए समृद्ध किया है। समग्र भारतीय समाज के यथार्थ की झलक अलग-अलग क्षेत्रों में उनकी अपनी विशेषताओं के साथ उस भाषा के साहित्य में मिलती है। इसका विस्तार सांकृतिक वैभव के उत्सवीकरण से लेकर मानवेतर जगत की करना तथा सामाजिक पदानुक्रम के विरुद्ध विद्रोह तक फैला हुआ है। इस माड्यूल में दिए गए पाठों से विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति को व्याख्यायित करने वाले पद-बंधों, 'विविधता में एकता' तथा 'सामंजस्य और तनाव' की आलोचनात्मक पड़ताल का अवसर प्राप्त होगा।
निर्धारित पाठ:
- कठफोड़वा [अय्यप्पा पणिक्कर]
- घटश्राद्ध [यू आर अनंतमूर्ति]
- अक्करमाशी [शरण कुमार लिंबाले]
हमारे समय में [अवतार सिंह पाश]
यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश [नवारूण भट्टाचार्य]
माड्यूल-3:
विकासशील देशों का साहित्य विशिष्ट ऐतिहासिक प्रक्रिया की उपज है। इस प्रक्रिया की लाक्षणिक विशेषता साम्राज्यवाद और उसके साथ स्थानीय कुलीन समुदाय का ऐसा संश्रय था जिसने इन देशों की भौतिक और मानवीय सम्पदा को गहरी क्षति पहुँचायी थी। इस विध्वंश के निशानात इन समाजों में तो मौजूद ही हैं, इन्हें सम्बंधित देशों के साहित्यकारों ने भी अपनी रचनाओं में जगह दी है। विकासशील देशों के साहित्य की विशेषता इन देशों की मनवीय त्रासदी और उससे संघर्ष करके अपनी अस्मिता को हासिल करने का प्रयत्न से सम्वलित रही है। हमारे विद्यार्थी अपने देश-काल के अनुभवों के साथ इस विराट उपनिवेशवाद विरोधी परम्परा को इस माड्यूल में समझ सकेंगे।
निर्धारित पाठ:
- विकासशील देशों का साहित्य
- एक पागल की डायरी [लू शुन]
- एक मिनट का मौन [इमानुआल ओर्तीज़]
- एक क्लर्क की मौत [चेखव]
- शब्द [पाब्लो नेरुदा]
माड्यूल-4:
शेष विश्व साहित्य
सम्पूर्ण विश्व के आधुनिक जीवन की वास्तविकता का निर्माण विश्व-युद्धों की विभीषिका से हुआ है। इन युद्धों ने पहली बार मनुष्य को पूरी तरह से ऐतिहासिक परिस्थितियों के सामने निरीह साबित कर दिया। व्यक्ति की व्यक्तित्व-हीनता का विस्तार मानवीय सम्बन्धों तक हुआ। जिसके चलते समाज को टिकाए रखने वाली संस्थाओं पर भयंकर दबाव पड़ने लगा। बीसवीं सदी के इस भयावह यथार्थ को पश्चिमी जगत के लेखकों ने सबसे अधिक महसूस किया और उसे अपनी रचनाओं में अभिव्यक्ति दी। यह समूचा साहित्य अकर्मण्यता का नहीं वरन मनुष्य को निरीह बना देने वाली ऐतिहासिक-सामाजिक परिस्थितियों के विरुद्ध प्रतिकार का साहित्य है। विद्यार्थी इस माड्यूल में हमारे समय तक विस्तारित होते हुए बीसवीं सदी के इस यथार्थ तथा उससे उपजे मानवीय संकट का सम्वेदनात्मक ज्ञान प्राप्त किया ।
निर्धारित पाठ:
- अजनबी [अल्बेयर कामू]
- पास्कुआल दुआरते का परिवार [कामिलो खोसे सेला]
- आख़िरी पत्ता [ओ हेनरी]
- आवेदन पत्र [विस्लावा शिंबोर्सका]
- झाड़-फूँक [टॉमस ट्रान्सट्रोमर]
Assessment Details with weights:
- Assignments -30
- Mid-term-40
- Test -10
- End term -20
Reading List:
ADDITIONAL REFERENCE:
- http://padhte-padhte.blogspot.in
- उत्तर औपनिवेशिकता के स्रोत और हिंदी साहित्य, प्रणय कृष्ण, हिंदी परिषद प्रकाशन, इलाहाबाद, 2008
- पुनर्वाक, डॉक्टर नगेन्द्र, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2007
- भारतीय साहित्य की पहचान, डॉक्टर सियाराम तिवारी, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2015
- भारतीय साहित्य, सम्पादक डॉक्टर मूलचंद गौतम, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2009
- देश देश की कविताएँ, केदारनाथ अग्रवाल, साहित्य भंडार, इलाहाबाद, 2010
- विश्व कविता संचयन, मंगलेश डबराल, साहित्य अकादमी, दिल्ली, 2016
- दुस्समय में साहित्य: परम्परा का पुनर्मूल्यांकन, शंभुनाथ, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2002
Pedagogy:
- Instructional design सामाजिक विज्ञानों और मानविकी के विश्वविद्यालय में प्रथम वर्ष का पाठ्यक्रम होने के नाते इस पाठ्यक्रम में अध्यापन करते हुए साहित्यिक अभिव्यक्ति की विशेषता के उद्घाटन के अतिरिक्त देश-देशांतर के विभिन्न कालखंडों के ऐतिहासिक व क्षेत्रीय अनुभवों के साथ तत्संबंधी साहित्य को जोड़ने पर जोर दिया जाएगा। विषय के विस्तार को देखते हुए विश्वविद्यालय में मौजूद मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और इतिहास के अध्यापकों से कुछ अतिथि व्याख्यान कराए जाएँगे। अंग्रेजी में विकासशील देशों के साहित्य पर अध्यापन पर जोर दिया जाता अहै इसलिए अंग्रेजी के भी कुछ अध्यापकों के अतिथि व्याख्यान कराए जाएँगे। इस पाठ्यक्रम और अंग्रेजी के IWL की कुछ संयुक्त कक्षाएँ भी आयोजित की जा सकती हैं। दिल्ली में मौजूद हिन्दीतर साहित्य के विद्वानों से भी कुछ व्याख्यान कराए जा सकते हैं।
- Special needs (facilities, requirements in terms of software, studio, lab, clinic, library, classroom/others instructional space; any other – please specify) समेकित रूप से क्लासरूम/लाइब्रेरी तथा कंप्यूटर लैब का प्रयोग किया जाएगा।
- Expertise in AUD faculty or outsidविश्वविद्यालय की फैकल्टी का प्रयोग करने का अतिरिक्त शिक्षण उद्देश्य से लेखकों, संपादकों, व्याख्याताओं तथा बुद्धिजीवियों का भी लाभ उठाने की चेष्टा की जाएगी।
- Linkages with external agencies (e.g., with field-based organizations, hospital; any others)
Assessment structure (modes and frequency of assessments)-
- Take home assignments of 30%,
- Mid semester exam/class test 30%
- End semester examination 40%