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Hindi Natak Evam Ekanki

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Course Type Course Code No. Of Credits
Discipline Core NSOL1HN104 4

Course Coordinator and Team:         SES Faculty

Email of course coordinator:                      pcbabed@aud.ac.in 

Pre-requisites:                                   No

  1. Course Description:

इस पाठ्यक्रम के द्वारा विद्यार्थी आधुनिक हिंदी नाटक के स्वरुप और विकास के साथ-साथ उसकी संरचना और प्रकृति को समझने में भी सक्षम होंगे | निर्धारित पाठों के माध्यम से विद्यार्थियों के समक्ष नाटक और एकांकी की ऐतिहासिक परम्परा को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया जाएगा ताकि वह सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों का विश्लेषण कर रचना और रचनाकार की प्रासंगिकता पर विचार कर सकें | यह पाठ्यक्रम केवल पठन एवं पाठन तक सीमित नहीं है क्योंकि इस पाठ्यक्रम का आधुनिक रूप रोजगारोन्मुखी है | यह पाठ्यक्रम सीबीसीएस एवं एनईपी ढांचे के अनुरूप है इसलिए यह पूरा प्रयास रहेगा कि विद्यार्थियों को भविष्य में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने हेतु भी तैयार किया जाए ताकि वह नाटक एवं एकांकी के व्यावहारिक रूप से भलीभांति रूबरू हो सकें | इसके लिए विभिन्न संस्थाओं द्वारा नाटक सम्बन्धी कार्यशालाओं का आयोजन करवाने का प्रयास किया जाएगा ताकि विद्यार्थी  निर्धारित पाठ में से स्वयं किसी एक एकांकी या नाटक के किसी एक दृश्य को मंचित करने के योग्य बन सकें |

  1. Course Objectives:
  • हिंदी नाटक एवं एकांकी पाठ्यक्रम का अध्ययन विद्यार्थियों के भाषा ज्ञान, अभिव्यक्ति कौशल और रचनात्मकता को विकसित करने में सहायक होता है। नाटक और एकांकी संवादात्मक और क्रियात्मक विधाएँ हैं, जो विद्यार्थियों को भाषा को जीवंत रूप में समझने और उसका प्रभावी प्रयोग करने का अवसर प्रदान करती हैं। इन विधाओं के अध्ययन से छात्र न केवल अपनी भाषागत दक्षता बढ़ाते हैं, बल्कि अभिनय, मंचीय प्रस्तुति और संप्रेषण कला में भी निपुण होते हैं।
  • नाटकों और एकांकियों में सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को प्रस्तुत किया जाता है, जिससे विद्यार्थियों की संवेदनशीलता और समाज के प्रति जागरूकता विकसित होती है। यह पाठ्यक्रम तर्कशक्ति, विश्लेषणात्मक क्षमता और कल्पनाशीलता को भी प्रोत्साहित करता है, जिससे छात्र विभिन्न जीवन परिस्थितियों को समझने और उनका समाधान खोजने में सक्षम होते हैं।
  • इसके अतिरिक्त, नाटक और एकांकी विद्यार्थियों में आत्मविश्वास, समूह सहयोग और नेतृत्व क्षमता का विकास करते हैं। मंचन के दौरान वे भाषा की सहज अभिव्यक्ति सीखते हैं और अपनी संवाद कला को प्रभावशाली बनाते हैं। इस प्रकार, हिंदी नाटक एवं एकांकी पाठ्यक्रम न केवल साहित्यिक और भाषाई ज्ञान को समृद्ध करता है, बल्कि यह विद्यार्थियों के संपूर्ण व्यक्तित्व विकास में भी सहायक सिद्ध होता है।
  1. Course Outcomes:

प्रस्तुत पाठ्यक्रम को पढ़ने के उपरांत विद्यार्थी :-

  • साहित्य के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों रुपों से परिचित हो सकेंगे।
  • भाषा और समाज के जटिल संबंधों की पहचान करने में सक्षम हो सकेंगे जिससे वे  समाज,राष्ट्र और विश्व के साथबदलते समय में व्यापक सरोकारों से अपना सम्बन्ध स्थापित कर पायें|
  • भाषा कौशल, लेखन और सम्प्रेषण क्षमता का विकास कर सकेंगे।
  • निर्धारित पाठ के माध्यम से रचनाकारों की युगीन परिस्थितियों और साहित्यिक प्रवृत्तियों के अध्ययन से, राष्ट्रीय एकता एवं सामाजिक समरसता के भाव को विकसित कर सकेंगे।                                                           
  1. Brief description of the modules:

प्रस्तुत पाठ्यक्रम मुख्य रूप से चार मॉड्यूल्स पर केन्द्रित रहेगा :-

मॉड्यूल-1- प्रस्तुत पाठ्यक्रम का मॉड्यूल-1  'नाटक तथा एकांकी की अवधारणा',  'हिंदी नाटक और एकांकी के उदय एवं विकास' पर केन्द्रित रहेगा जिसे निर्धारित पाठों के परिप्रेक्ष्य में विद्यार्थियों के समक्ष रखा जायेगा | इस माड्यूल के अंतर्गत हिंदी नाटक एवं एकांकी के बीच क्या अंतर है ? दोनों एक दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं ? इसको लेकर विद्वानों के बीच जो मतभेद हैं इन पर भी विद्यार्थियों का ध्यान आकृष्ट किया जाएगा | कुछ विद्वान या आलोचक एकांकी को नाटक का लघु रूप मानते हैं, यह धारणा कितनी सही है या गलत ? दोनों विधाओं के शिल्प में क्या अंतर है ? इन सभी पहलुओं पर विद्यार्थियों का एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए इस माड्यूल में नाटक  ‘भारत दुर्दशा’ तथा  एकांकी – ‘औरंगजेब की आखिरी रात’ का अध्ययन एक साथ रखा गया है ताकि विद्यार्थी विषय-वस्तु, शिल्प, रंगमंचीयता आदि दृष्टि से दोनों का तुलनात्मक अध्ययन कर उसमें सहसंबंध भी स्थापित कर सकें |

  निर्धारित पाठ :-

  • 1.    नाटक एवं एकांकी की संरचना एवं प्रकृति
  • 2.    नाटक एवं एकांकी उद्भव एवं विकास
  • 3.    नाटक – भारत-दुर्दशा (भारतेंदु हरिश्चंद्र)
  • 4.    एकांकी – औरंगजेब की आखिरी रात (रामकुमार वर्मा)

मॉड्यूल -2- इस माड्यूल के अंतर्गत जयशंकर प्रसाद द्वारा कृत नाटक – ‘स्कंदगुप्त’ को रखा गया है | भारतेंदु ने हिंदी नाटक को जो साहित्यिक भूमिका प्रदान की उसे कालान्तर में प्रसाद ने पल्लवित किया | हालांकि जयशंकर प्रसाद का आगमन नाटक के क्षेत्र में काफी बाद में हुआ लेकिन अपने ऐतिहासिक नाटकों के माध्यम से प्रसाद ने भारत के गौरवशाली अतीत का चित्रण कर राष्ट्रीयता भावना उत्पन्न करने का सफल प्रयास किया | प्रस्तुत माड्यूल में ‘स्कंदगुप्त’ का अध्ययन करते हुए विद्यार्थी प्रसाद की नाट्य कला, उनके नाटकों की रंगमंचीयता को लेकर जो मतभेद हैं उनसे भली-भांति परिचित होंगे | इसी परिप्रेक्ष्य में जगदीशचन्द्र माथुर की एकांकी ‘भोर का तारा’ भी इस माड्यूल का हिस्सा है | जगदीशचन्द्र माथुर ने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी रंगमंच को नई दिशा देने का प्रयास किया और इनकी एकांकी अभिनेयता की दृष्टि से काफी सफल मानी जाती हैं | इस माड्यूल में विद्यार्थी दो सफल रचनाकारो की लगभग समान विषयवस्तु वाली रचनाओं का तुलनात्मक मूल्यांकन कर पायेंगे  ताकि वह नाटक और एकांकी की रंगमंचीयता में आने वाली परेशानियों तथा उसकी बारीकियों से अवगत हो सकें और उनके बीच के भेद को भी पहचान सकें |

निर्धारित पाठ :-

1. नाटक – स्कन्दगुप्त (जयशंकर प्रसाद)

2. एकांकी – भोर का तारा (जगदीशचन्द्र माथुर)

मॉड्यूल -3- स्वतंत्रता के पश्चात नाटक जीवन के यथार्थ के साथ अधिक जुड़ गए यद्यपि इस काल में भी नाटक की विषयवस्तु इतिहास –पुराण पर आधारित रही लेकिन अब नाटककार ऐतिहासिक या पौराणिक घटनाओं की सहायता से समसामयिक जीवन की समस्याओं और प्रश्नों को अधिक रूपायित करने लगे | प्रसादोत्तर हिंदी नाटक के सशक्त नाटककारों में से एक मोहन राकेश हैं जिनके द्वारा कृत ‘आषाढ़ का एक दिन’ का अध्ययन इस माड्यूल के अंतर्गत कराया जाएगा | इसी तारतम्य में गोविन्द वल्लभ पन्त की एकांकी ‘विषकन्या’ के माध्यम से एक और ऐतिहासिक कथानक विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा जिससे विद्यार्थियों को इस बात का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त हो कि रचनाकार शिल्प के माध्यम से कैसे इतिहास और वर्तमान के बीच एक संवाद स्थापित करता है |

निर्धारित पाठ :-

1. नाटक – आषाढ़ का एक दिन  (मोहन राकेश)

2. एकांकी – विष कन्या  (गोविन्द वल्लभ पन्त)

 मॉड्यूल -4- इस माड्यूल के तहत भीष्म साहनी के नाटक ‘माधवी’ का अध्ययन कराया जाएगा | प्रस्तुत नाटक में नाटककार ने महाभारत की पौराणिक कथा को आधार बनाकर नारी जीवन की त्रासदी का यथार्थवादी चित्रण किया है | ‘माधवी’ तथाकथित पुरुषवादी मानसिकता की खोखली मान्यताओ पर करारा तमाचा है | इसी तारतम्य में विष्णु प्रभाकर की एकांकी ‘और वह न जा सकी’ को भी रखा गया है जिसमें आधुनिक भावबोध से उत्पन्न तनाव एवं जीवन संघर्ष को प्रस्तुत किया गया है | विद्यार्थी इन पाठों के ज़रिये नाटक और एकांकी के कथानक में आने वाले परिवर्तन से परिचित होंगे साथ ही पाठों में उठाये गए स्त्री-प्रश्नों का विश्लेषण ऐतिहासिक एवं आधुनिक संदर्भों में कर पायेंगे |

निर्धारित पाठ :-

1. नाटक – माधवी   (भीष्म साहनी)

2. एकांकी – और वह न जा सकी   (विष्णु प्रभाकर)

Assessment Plan

S.No

Assessment

Weightage

1

Assignment

20%

2

Presentation

30%

3

Term-End

50%

 

Readings:

  • नाट्य शास्त्र की भारतीय परम्परा और दशरूपक – हजारी प्रसाद द्विवेदी, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली,2007.
  • हिंदी नाटक : उद्भव और विकास – दशरथ ओझा, राजपाल एंड संस, कश्मीरी गेट, दिल्ली, 2008.
  • नाटककार भारतेंदु की रंग-परिकल्पना, सं. सत्येन्द्र तनेजा, राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली, 2002.
  • हिंदी एकांकी- सिद्धनाथ कुमार, नेहा पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, दिल्ली, 2009.
  •  एकांकी उद्भव और विकास - मंजरी त्रिपाठी, ज्ञान-विज्ञान प्रकाशन दिल्ली |
  • जयशंकर प्रसाद : रंगदृष्टि (भाग-१ ), महेश आनंद,राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नयी दिल्ली |
  • नाटककार जयशंकर प्रसाद, सत्येन्द्र कुमार तनेजा,राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली 1997.
  • भारत-दुर्दशा : भारतेंदु हरिश्चन्द्र, संपा. लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय, विश्वविद्यालय प्रकाशन,गोरखपुर, 1953.
  • सप्तकिरण – डॉ. रामकुमार वर्मा, नेशनल इंफ़रमेशन एंड पब्लिकेशन लिमिटेड, बम्बई, प्रथम संस्करण -1947.
  • स्कन्दगुप्त – जयशंकर प्रसाद, भारती भंडार, बनारस, द्वितीय संस्करण |
  •  नए एकांकी – संपा. अज्ञेय, राजपाल एंड संस, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण – 1961.
  • आषाढ़ का एक दिन – मोहन राकेश, राजपाल एंड संस, नयी दिल्ली |
  • विष कन्या – गोविन्द वल्लभ पन्त, आत्माराम एंड संस, दिल्ली, प्रथम संस्करण – 1958.
  • माधवी – भीष्म साहनी, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण – 1984.
  • और वह न जा सकी – विष्णु प्रभाकर
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