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Aadikalin Madhyakalin Hindi Kavita

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Course Type Course Code No. Of Credits
Discipline Core NSOL1HN105 4

Course Coordinator and Team:             SES Faculty

Email of course coordinator:                      pcbabed@aud.ac.in 

Pre-requisites:                                               No

  1. Course Description:

हिंदी की विशाल काव्य-राशि बनती-बदलती रही है। यह पाठ्यक्रम आरम्भिक हिंदी कविता का परिचय देते हुए भक्ति काव्य की संतकाव्य, प्रेमाख्यान, रामभक्ति व कृष्णभक्ति काव्यधारा के प्रमुख कवियों की कविताओं को पढ़ने व विश्लेषित करने की क्षमता विद्यार्थियों में विकसित करेगा। रीतिकाव्य के विभिन्न कवियों की ऋंगारिक व अन्य प्रकार की कविताओं का अध्ययन भी विद्यार्थी इस पाठ्यक्रम में कर सकेगा। समग्रतया यह पाठ्यक्रम हिंदी की पूर्व आधुनिक काव्य-परम्पराओं को समझने के औज़ार विकसित करने का लक्ष्य रखता है। इस पाठ्यक्रम के अध्ययन से विद्यार्थी अपनी साहित्यिक काव्य परंपरा का बोध विकसित कर सकेंगे। साथ ही यह पाठ्यक्रम उन्हें अपनी सांस्कृतिक विरासत से परिचित कराते हुए उसके आलोचनात्मक विश्लेषण के लिए तैयार करेगा। विद्यार्थियों को  विभिन्न काल खंडों से प्राचीन कवियों को पढ़ते हुए, अपनी सांस्कृतिक परम्परा का ज्ञान और उसके समकालीन भाव-रूपों का बोध हो सकेगा।

  1. Course Objectives:

आदिकालीन एवं मध्यकालीन हिंदी कविता का अध्ययन विद्यार्थियों को हिंदी साहित्य की ऐतिहासिक यात्रा से परिचित कराता है। इस पाठ्यक्रम के माध्यम से वे हिंदी कविता के प्रारंभिक स्वरूप, उसकी प्रवृत्तियों और विभिन्न काव्यधाराओं को समझते हैं। आदिकालीन काव्य मुख्यतः वीर रस एवं भक्ति भावनाओं से ओत-प्रोत है, जो तत्कालीन समाज, संस्कृति और जीवन मूल्यों को उजागर करता है। वहीं, मध्यकालीन काव्य भक्ति, नीति, शृंगार एवं रहस्यवाद से समृद्ध है, जो धार्मिक, दार्शनिक और नैतिक चेतना को विकसित करने में सहायक है।

इस पाठ्यक्रम का एक प्रमुख उद्देश्य विद्यार्थियों में काव्य प्रेम विकसित करना और उन्हें भाषा, अलंकार, रस एवं छंद की समझ प्रदान करना है। इसके अध्ययन से वे तुलसीदास, कबीर, मीरा, सूरदास जैसे महान कवियों के काव्य-सौंदर्य एवं उनके समाज-सुधारक दृष्टिकोण को समझ पाते हैं। साथ ही, यह पाठ्यक्रम विद्यार्थियों को काव्य की गहराई में जाने, उसके अर्थों का विश्लेषण करने और जीवन में साहित्यिक मूल्यों को आत्मसात करने के लिए प्रेरित करता है।

इसके अतिरिक्त, यह अध्ययन छात्रों की भाषा-शक्ति, कल्पनाशीलता और सांस्कृतिक चेतना को समृद्ध करता है। आदिकाल और मध्यकाल के काव्य के माध्यम से वे भारतीय इतिहास, परंपराओं और साहित्यिक प्रवृत्तियों की विस्तृत जानकारी प्राप्त करते हैं, जो उनके संपूर्ण मानसिक एवं बौद्धिक विकास में सहायक सिद्ध होता है।

  1. Course Outcomes:
  • प्राचीन कविता के विश्लेषण में सक्षम बनाना।
  • काव्यात्मक सांस्कृतिक परम्परा का बोध पैदा करना और उसके विश्लेषण के औज़ार विकसित करना। 
  • भक्ति, ऋंगार व अन्य रसों की काव्यात्मक अभिव्यक्तियों की समझ और उनका अंतरसंबंध।

 Brief description of the modules:

माड्यूल-1 भक्ति की निर्गुण काव्य धारा

संत काव्य परम्परा मुख्य रूप से समाज में मौजूद अंतर्विरोधों की स्थानीय भाषा में काव्यात्मक अभिव्यक्ति है। इस काव्यधारा के ज्ञानमार्गीय हिस्से का एक छोर सिद्ध और नाथ परम्परा से जुड़ता है और दूसरा छोर उनके वर्तमान में मौजूद सामाजिक व आध्यात्मिक सवालों से बँधा हुआ है। दूसरी तरफ़ इस काव्यधारा की प्रेममार्गीय परंपरा भले ही फ़ारसी काव्य परम्परा से सम्बद्ध हो पर वह हिंदू और मुसलमान, दोनों समुदायों की साझी संस्कृति की वाहक है। गुरु का सम्मान, प्रेम, सहजता, ज्ञान आदि विषयों पर बात करते हुए विद्यार्थी इस माड्यूल के जरिये भक्ति कविता के निर्गुण स्वर को समझ सकेंगे।

पाठ:

कबीर व जायसी की चुनी हुई कविताएँ

माड्यूल-2 भक्ति की सगुण काव्यधारा

भक्ति की सगुण काव्य परम्परा मुख्य रूप से कृष्ण और राम भक्ति काव्यधारा के रूप में विभाजित की जाती है। विद्यापति की कविता ऋंगार और भक्ति के बीच अवस्थित है।  वे आदिकाल से भक्तिकाल में संक्रमण के कवि कहे जाते हैं। कृष्ण भक्ति के प्रतिनिधि कवि सूरदास की कविता में वियोग ऋंगार और वात्सल्य का अप्रतिम चित्रण है। तुलसी रामभक्ति की मर्यादावादी कविता के प्रतिनिधि कवि हैं। यहाँ भक्ति लोक मंगल की भूमि पर संचरित होती है लेकिन अन्य भक्त कवियों की तरह ही तुलसी की कविता भी अपने समय के तनावों से मुक्त नहीं है।भक्ति कविता की एक विशिष्टता इसमें स्त्री स्वर का होना भी है। मीरा का काव्य प्रेम व भक्ति के लिए सामाजिक वर्जनाओं का अतिक्रमण करने का काव्य भी है। रहीम की कविता भक्तिकाल के भीतर नीतिकाव्य की काव्यात्मक अभिव्यक्तियों का श्रेष्ठतम रूप है। विद्यार्थी इन माड्यूल में इन कवियों की चुनिंदा कविताओं के सहारे सगुण की अवधारणा और उसके काव्यात्मक रूप को समझ सकेंगे।

पाठ:

विद्यापति, सूरदास, तुलसीदास, रहीम व मीराबाईकी चुनी हुई कविताएँ

माड्यूल- 3 रीतिकाल

सम्वत् 1700 के बाद भक्ति का आवरण भेदते हुए लौकिकता सामने आने लगी थी।  हिंदी कविता के लिए यह नयी प्रवृत्ति थी।आचार्यों ने इस काल में तीन तरह के कवियों: रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त में बाँटा है। इस काल के प्रमुख कवियों में से एक,गागर में सागर भरने वाले बिहारी ने दोहा छंद का जैसा परिष्कार किया और उसे जैसा भाव-सक्षम बनाया, वह अप्रतिम था।घनानंद रीति कविता के भीतर से रीति को चुनौती देने वाले कवि हैं। उनकी कविता में प्रेम की पीर दिखाई देती है। रसखान रीतिकाल के कवि होने के बावजूद कृष्णभक्ति कविता को नयी ऊँचाइयों तक ले जाते हैं। विद्यार्थी इस माड्यूल में आधुनिकता के आगमन से ठीक पहले के काव्य-जगत की समझ विकसित कर सकेंगे।

पाठ:

बिहारी, घनानंद व रसखानकी चुनी हुई कविताएँ

Assessment Plan

S.No

Assessment

Weightage

1

Assignment

20%

2

Presentation

30%

3

Term-End

50%

Readings:

  • हिंदी साहित्य का सरल इतिहास, विश्वनाथ त्रिपाठी, ओरिएंट ब्लैकस्वान, 2007
  • त्रिवेणी, रामचंद्र शुक्ल, लोकभारती प्रकाशन, 2017
  • कबीर, हज़ारीप्रसाद द्विवेदी, राजकमल प्रकाशन, 2019
  • रीतिकाव्य की भूमिका, नगेंद्र, नेशनल पब्लिशिंग हाउस, 2000
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