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Sahitya ki Samajh

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Course Type Course Code No. Of Credits
Foundation Elective SUS4HN334 4

Course coordinator and team :

  1. Does the course connect to, build on or overlap with any other courses offered in AUD?अंग्रेजीमेंपढ़ाएजानेवाले 'Understanding Literature' केसाथइसपाठ्यक्रमकीकुछ-कुछसमानताहै। SCCE (School Of Culture and Creative Expressions) मेंपढ़ाएजानेवाले Creative Writing केपाठ्यक्रमोंसेभीइसकाघनिष्ठसम्बंधहोगा।यहपाठ्यक्रमहिंदीआधारपाठ्यक्रमऔरभारतीयऔरविश्वसाहित्यजैसे हिंदी के प्रारम्भिक पाठ्यक्रमपढ़चुकेछात्रोंमेंसाहित्यकीउन्नततरसमझविकसितकरनेमेंमददकरेगा।
  2. Specific requirements on the part of students who can be admitted to this course:
  3. (Pre requisites; prior knowledge level; any others – please specify) None
  4. No. of students to be admitted (with justification if lower than usual cohort size is proposed): As per School Rules
  5. Course scheduling: (summer/winter course; semester-long course;half-semester course; workshop mode; seminar mode; any other – please specify)- Semester-long course, Winter Semester
  6. Proposed date of launch: How does the course link with the vision of AUD and the specific programme(s) where it is being offered?अम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली का उद्देश्य दिल्ली के विद्यार्थियों में समता मूलक ज्ञान का प्रसार करना है। दिल्ली की राजकीय भाषाओं में हिंदी एक महत्वपूर्ण भाषा है। यहाँ के विद्यालयों में साहित्य की पढ़ाई कर के आते हैं। यहाँ तक कि दिल्ली शहर के शिक्षा और संस्कृति का एक बड़ा केंद्र होने के चलतेदैनन्दिन जीवन में विद्यार्थी साहित्यिक अभिव्यक्तियों से रूबरू होते रहते हैं। यह पाठ्यक्रम उनमें इन अभिव्यक्तियों के विविध संस्तरों की समझ पैदा करने के नाते अम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली की सम्पूर्ण परिकल्पना से जुड़ा हुआ है।
  7. Course Details:

Summary:

यह पाठ्यक्रम मूल रूप से साहित्य की सामाजिक अवस्थिति, साहित्य की साहित्यिकता, साहित्य के विभिन्न रूपों, काव्य के भीतर उसकी लयात्मकता के विभिन्न तत्वों, गद्य लेखन के विभिन्न रूपों, नाटक की बहुस्तरीयता, कथा साहित्य की विविधता और साहित्यिक आलोचना सम्बंधी प्रश्नों को विद्यार्थियों के लिए बोधगम्य बनाता है। साहित्य के सम्बंध में भारतीय चिंतन काव्यशास्त्र के नाम से लिपिबद्ध हुआ है। कारण यह कि आधुनिक काल से पहले साहित्यिक अभिव्यक्ति का मुख्य रूप कविता ही हुआ करती थी। कविता के सौंदर्य को समझने की दृष्टि से भारतीय चिंतन में जिन प्रमुख उपकरणों का विकास हुआ वे शब्द शक्ति, रस, छंद, अलंकार आदि के नाम से जाने जाते हैं। इन्हीं के इर्द-गिर्द भारतीय काव्यशास्त्र के विभिन्न सम्प्रदायों का भी नामकरण हुआ है। ये उपकरण बहुत हद तक गद्य लेखन के भी विभिन्न रूपों को समझने में भी सहायक होते हैं। पाठ्यक्रम में इनके साथ-साथ अन्य प्रासंगिक तत्वों का भी परिचय कराया जाता है।

Objectives.

  • विद्यार्थियों में साहित्य का बोध पैदा करना करना।
  • साहित्यिक रचनाओं के सौंदर्य को उद्घाटित करने वाले उपकरणों से परिचय कराना।
  • साहित्य की सामाजिकता स्पष्ट करना।
  • साहित्य के विश्लेषण की परम्परा से परिचय कराना।

Overall structure:

Contents (brief note on each module; indicative reading list with core and supplementary readings)

माड्यूल-1:

साहित्य और उसके विभिन्न रूप

सृजनात्मक अभिव्यक्ति के लिए साहित्य अपेक्षाकृत नया शब्द है। पहले इसे काव्य ही कहा जाता था। काव्य के अतिरिक्त समस्त लेखन को समाहित करने वाले परिसर का नाम वांगमय था। आधुनिक काल में वांगमय से अतिरिक्त सृजनात्मक लेखन के लिए साहित्य शब्द का प्रयोग शुरू हुआ। इसके भीतर काव्यात्मक और गद्यात्मक दोनों रूप शामिल किए जाते हैं। काव्य के भीतर महाकाव्य, खंडकाव्य, गीत, लम्बी कविता इत्यादि तो गद्य के भीतर कथा, कथेतर साहित्य और नाटक आते हैं। इस माड्यूल में इन सबकी विधागत विशेषताओं का परिचय कराया जाएगा।

माड्यूल-2:

काव्य-प्रयोजन, काव्य-हेतु, शब्द शक्ति, रस, छंद और अलंकार

उपरोक्त सभी धारणाएँ साहित्य की बुनियादी समझदारी से संबंध हैं, काव्य-प्रयोजन साहित्य के उद्देश्य पर विचार करता है। सौभाग्य से इस सिलसिले में प्राचीन चिंतन के अतिरिक्त आधुनिक काल में भी पर्याप्त विचार हुआ है। काव्य-हेतु साहित्य के अंगीभूत कारकों का विश्लेषण करता है। शब्द शक्ति साहित्य के अर्थ ग्रहण की जटिलता को स्पष्ट करती है। रस साहित्य से पड़ने वाले प्रभावों का विवेचन है। छंद साहित्यिक रचना के भीतर के लय का नियम है। अलंकार साहित्य के सौंदर्यपरवर्धक उपकरणों का वर्गीकरण है। प्रतीक, बिम्ब आदि साहित्य को समझने के नए उपकरण हैं। इस माड्यूल में विद्यार्थी इन सबका संक्षिप्त परिचय हासिल करेंगे।

माड्यूल-3:

कथा साहित्य

कथा साहित्य के भीतर उपन्यास और कहानी आते हैं। जहाँ उपन्यास की विधा आधुनिक काल की उपज है, वहीं कहानी बेहद प्राचीन रूप होते हुए भी साहित्यिक विधा के रूप में आधुनिक काल में ही विकसित-पल्लवित हुई। इसे प्राचीन आखायिका के मुक़ाबले आधुनिक काल में उआपजी हुई शॉर्ट स्टोरी से जोड़कर देखा जाता है। उपन्यास आधुनिक काल का महाकाव्य कहा जाता है। महाकाव्य और उपन्यास के बीच में अमानता और अंतर पर विचार करने के ज़रिए इन दोनों का स्वरूप स्पष्ट होता है। इसी तरह कहानी और उपन्यास के बीच अंतर पर भी विभिन्न विद्वानों ने विचार किया है। इन सबसे विद्याथियों का परिचय इस माड्यूल में कराया जाएगा।

माड्यूल-4:

नाटक और कथेतर गद्य

नाटक साहित्य की प्राचीनतम विधाओं में से एक है। इसका रूप मुख्यतः अभिनय से जुड़ा हुआ है लेकिन इसका पाठ्य रूप भी महत्वपूर्ण होता है। नाटक विभिन्न कला विधाओं का समावेश है। उसके अभिनय हेतु बने हुए रंगमंच को लघु ब्रह्मांड भी कहा जाता है। आधुनिक काल में नाटक के एकांकी, रेडियो रूपक और नुक्कड़ नाटक जैसे अन्य रूप भी सामने आए हैं। यहाँ तक कि दूरदर्शन के धारावाहिकों को सामान्य बोलचाल में नाटक ही कहते हैं। रंगमंच की रूढ़ियाँ तथा अभिनय के अंग इस माड्यूल के विचारणीय विषय हैं। गद्य के कथेतर रूपों में निबंध सबसे महत्वपूर्ण और रोचक विधा है। वैचारिक लेख से भिन्न इसकी सृजनात्मकता इसे आधुनिक काल की विशेष साहित्यिक विधा बना देती है। इसी तरह वैयक्तिकता के उदय के साथ आत्मकथा और जीवनी भी साहित्यिक विधा के रूप में प्रकट हुए। संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, डायरी व पत्र लेखन आदि भी कथेतर गद्य की परिधि के भीतर ही आते हैं। इस माड्यूल में विद्यार्थी इन विधाओं का परिचय कराया जाएगा।

सहायक पाठ और संदर्भ:

  • साहित्य का शास्त्र, नित्यानंद तिवारी , स्वराज प्रकाशन, दिल्ली, 2010
  • साहित्य सहचर, प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद, मध्यकालीन बोध का स्वरूप, हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ग्रंथावली, सम्पादक: मुकुंद द्विवेदी, राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2010
  • साहित्य विधाओं की प्रकृति, सम्पादक: देवी शंकर अवस्थी, मैकमिलन प्रकाशन, दिल्ली, 1981
  • साहित्य का उद्देश्य, प्रेमचंद, http://www.debateonline.in/310712/
  • हिंदी साहित्यकोश, सम्पादक: धीरेंद्र वर्मा, ज्ञानमंडल प्रकाशन, वाराणसी, 2007
  • हिंदी छंदोलक्षण, नारायण दास, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2004
  • रस, अलंकार और पिंगल, राम बहोरी शुक्ल, शक्ति कार्यालय प्रकाशन, इलाहाबाद, 1950

Pedagogy:

Instructional design

इस पाठ्यक्रम के अध्यापन में कक्षा-अध्यापन पर जोर देने के साथ ही कक्षा में साहित्यिक उपकरणों के प्रयोग और उनमें दक्षता के लिए अभ्यास पर जोर होगा। उच्च्तर स्तर की कक्षा होने के कारण विद्यार्थियों को साहित्य के सौंदर्य को परखने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा। उन्हें छंदों का अभ्यास करने के ज़रिए छंद को पहचानने का भी प्रशिक्षण दिया जाएगा। नाटक के विश्लेषण में सक्षम बनाने के लिए उन्हें नाटक देखकर उसकी समीक्षा के लिए प्रेरित किया जा सकता है। गद्य की लय तथा कथा के ढाँचे से परिचित कराने के लिए साहित्यकारों को व्याख्यान हेतु आमंत्रित किया जाएगा।

  • Special needs (facilities, requirements in terms of software, studio, lab, clinic, library, classroom/others instructional space; any other – please specify)
  • समेकित रूप से क्लासरूम/लाइब्रेरी तथा कंप्यूटर लैब का प्रयोग किया जाएगा।
  • Expertise in AUD faculty or outside
  • विश्वविद्यालय की फैकल्टी का प्रयोग करने का अतिरिक्त शिक्षण उद्देश्य से लेखकों, संपादकों, व्याख्याताओं तथा बुद्धिजीवियों का भी लाभ उठाने की चेष्टा की जाएगी।
  • Linkages with external agencies (e.g., with field-based organizations, hospital; any others) None

Assessment structure (modes and frequency of assessments)-

  1. Take home assignments of 30%,
  2. Mid semester exam/class test 30%
  3. End semester examination 40%
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