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प्रवासी हिंदी साहित्य

Course Type Course Code No. Of Credits
Foundation Elective NA 4

Semester and Year Offered: WS 2021

Course Coordinator and Team: Prof. Satyaketu Sankrit, Prof. Gopal Pradhan

Email of course coordinator:  

Pre-requisites: None

Course Objectives/Description:

इस कोर्स के माध्यम से भारत के बाहर हिंदी में लिखे जा रहे साहित्य को समझाने का प्रयास किया जाएगा| भारत एक बहुसांस्कृतिक,बहुभाषिक देश है इसलिए यहाँ का साहित्य भी विभिन्न विमर्शों, परिवेशों और भावनाओं को अभिव्यक्त करता है | प्रवासी साहित्य हिंदी भाषा के वैश्विक पटल पर हो रहे विस्तार एवं चर्चा को समझने की एक दृष्टि भी विकसित करता है | प्रवासी साहित्य भारत से अपनी संस्कृति भाषा और समाज से कटकर जीविका के लिए विदेशों में संघर्ष करते भारतीयों की मनोदशा और आंतरिक पीड़ा को अभिव्यक्त करता है | अपने परिवार और समाज से दूर इन भारतीयों के लिए लेखन अपने एकांत को समाप्त करने का सबसे सशक्त जरिया है | इसके अध्ययन के दो मूल आधार होंगे | पहला आधार तो उन गिरमिटिया मजदूरों के वंशजों के लेखन का है जो अपने समाज से काटकर मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, त्रिनिडाड में आदि स्थानों पर बसा दिये गए| उन गिरमिटिया मजदूरों के दूसरी पीढ़ी जो वहीँ पैदा हुई लेकिन अपने पूर्वजों की पीड़ा को भूला नहीं पायी और उस दर्द को कहानी, उपन्यास, कविता आदि माध्यमों में व्यक्त किया| दूसरा आधार, उन भारतीय लोगों का है जो जीविकोपार्जन के लिए एनआरआई के रूप में सुख-सुविधा की चाह विदेशों में बस तो गए लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हो गयी कि अपनी भाषा, संस्कृति और समाज की संवेदना उनसे छूट रही है लिहाज़ा उन्होंने लिखना शुरू किया|

Course Outcomes:

  • विद्यार्थियों को भारत के बाहर लिखे जा रहे हिंदी साहित्य और उसकी सरंचना से रु-ब-रु कराना।
  • विद्यार्थियों को हिंदी साहित्य के वैश्विक परिदृश्य को समझने की दृष्टि प्रदान करना|
  • हिंदी भाषा के महाशक्ति के रूप में बढ़ते कदम से परिचय कराना|
  • प्रवासी साहित्य की विविध साहित्यिक अभिव्यक्तियों की विद्यार्थियों में समझ विकसित करना।

Brief description of modules/ Main modules:

माड्यूल-1: प्रवासी साहित्य का संक्षिप्त परिचय

‘भारत में प्रवासी भारतीयों की चर्चा तथा उनके सम्बन्ध में गंभीर चिंतन मनन का शुभारम्भ महात्मा गांधी द्वारा दक्षिण अफ्रिका में व्यतीत किये गये लगभग इक्कीस वर्षों के उस संघर्षमयी जीवन यात्रा से माना जा सकता है जिसने पूरे विश्व का ध्यान अपनी और आकृष्ट किया| सही अर्थों में यह भारत के प्रवासी समुदाय से एकात्म स्थापित करने की एक ऎसी आरम्भिक पहल थी जिसनें जल्द ही विभिन्न देशों में रहनेवाले गिरमिटिया बने भारतीय मजदूरों में एक नयी संचेतना का संचार किया| उनमें स्वत्व का भाव जागृत कर अपनी संस्कृति एवं भाषा को अक्षुण्ण बनाए रखने का भाव पुष्ट किया| उनकी इसी भावना की अभिव्यक्ति कालन्तर में साहित्य के जिस रूप से हुई उनमें प्रवासी साहित्य के आरम्भिक रूप की तलाश की जा सकती है|हिन्दी के प्रवासी साहित्य की स्थिति अंग्रेजी से तनिक भिन्न है| हिन्दी के आलोचकों नें हिन्दी के प्रवासी साहित्य को जिस तरह के नजरिये से देखना शूरू किया उससे उसे वह गरिमा नहीं मिल पाई जिसका वह हकदार था| परन्तु विगत तीन दशकों से जिस तरह के काम इसके अंतर्गत हुए हैं उससे वह भारत तथा विदेशों के हिन्दी जगत में एक गंभीर चर्चा के विषय के रूप में उभरकर सामने आया है और हिन्दी के आलोचकों नें इसके लेखन की गंभीरता को भी स्वीकार किया है| हिन्दी के प्रवासी साहित्य का एक अपना वैशिष्ठ्य है जो उसकी संवेदना, परिपक्व जीवन दृष्टि और परिवेश में दिखाई पड़ता है| मॉरिशस.फिजी,सूरीनाम आदि देशों में भारतवंशियों की दूसरी-तीसरी पीढी के साहित्य में उनका देश बोलता है जिस पर निश्चित ही भारतीय संस्कृति, दर्शन था मूल्यों का गहरा प्रभाव है| अमेरिका, ब्रिटेन आदि देशों के लेखक पहली पीढी के हैं और इसी कारण उनकी रचनाओं में स्वदेश-विदेश दोनों हैं| इनकी रचनाओं में अमेरिका एवं यूरोप के देशों की सुख-समृद्धि तथा तनाव एवं संघर्ष है और साथ ही स्वदेश की मिट्टी की मधुर स्मृति भी गुँथी हुई है| इस तरह दोनों ही प्रकार के प्रवासी साहित्य में भारत अवस्थित है, चाहे उसकी धर्म-संस्कृति के रूप में चाहे नोस्टेल्जिया अथवा अस्तित्व एवं अस्मिता निर्मिती के सूत्र की तलाश के रूप में|भारत के हिन्दी समाज के लिए यह अपेक्षाकृत नई वस्तु है जिसमें नये कथानक और पात्रों के माध्यम से प्रवासी भारतीयों के जीवन संघर्ष को प्रस्तुत किया गया है| हिन्दी के इस प्रवासी साहित्य का संसार अब इतना व्यापक हो चुका है कि उसने अपना एक आकाश बनाने में सफलता हासिल कर ली है| प्रवासी साहित्य आज ऐसे मुकाम पर पहुँच चुका है जहाँ वह हिन्दी साहित्य के व्यापक मानचित्र में उचित एवं सम्मानपूर्ण स्थान का मजबूत दावेदार बन बैठा है|

इधर के दो दशकों में ब्रिटेन में रहने वाले प्रवासी साहित्यकारों ने तेजी से दुनिया भर में अपनी रचनाओं से अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया। ब्रिटेन में हिन्दी लेखन की शुरुआत पत्रकारिता से हुई। आज से लगभग 128 वर्ष पहले वर्ष 1883 में कालाकांकर नरेश राजा रामपाल सिंह के संपादन में पहला हिन्दी अंग्रेजी त्रैमासिक समाचार पत्र हिन्दोस्था न प्रकाशित हुआ। हालांकि आगे चलकर 1884 में इंग्लैण्डर में यह केवल अंग्रेजी में निकलने लगा लेकिन भारत में 1885 से हिन्दी में प्रकाशित होने लगा। इसके बाद हिन्दी प्रचार परिषद, लन्दन के तत्वावधान में वर्ष 1964 में प्रवासिनी त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन होने लगा। इसका प्रकाशन ज्योति प्रिंटर, 40, स्टार स्ट्रीट, लन्दन से होता था और इसका कार्यालय था- 15, क्रॉच हॉल रोड, लन्द न एन 8 पर। इसके संपादक थे श्री धर्मेन्द्र गौतम और पत्रिका में श्री राधेश्याम सोनी, श्री जगदीश मित्र कौशल, श्री बैरागी, श्री मोहन गुप्त, श्री विनोद पांडे, श्री सत्यंदेव प्रिंजा, अबू अब्राहम, कान्ता पटेल आदि का लेखकीय सहयोग होता था।

इसके बाद जून, 1964 में श्री रमेश कुमार सोनी ने मिलाप वीकली पत्र का संपादन और प्रकाशन प्रारंभ किया तथा वर्ष 1966 से इसमें हिन्दी के भी दो पृष्ठ दिए जाने लगे। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आठ पृष्ठों का यह साप्ताहिक समाचार पत्र अब भी प्रकाशित होता है और इस प्रकार ब्रिटेन में इसे उर्दू-हिन्दी का सर्वाधिक दीर्घ अवधि तक प्रकाशित होने वाला अखबार कहना उचित ही होगा। श्री जगदीश मित्र कौशल के संपादन में 23 मार्च, 1971 को लन्दन से ही अमरदीप साप्ताहिक का प्रकाशन प्रारंभ हुआ और लगभग 32 वर्ष तक प्रकाशन के बाद यह वर्ष 2003 में बन्द हो गया। अमरदीप साप्ताहिक के महत्व को देखते हुए श्री जगदीश मित्र कौशल को भारतीय उच्चायोग की ओर से पहला आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी पत्रकारिता सम्मान वर्ष 2006 के लिए दिया गया। पत्रिका चेतक का प्रकाशन भी श्री नरेश भारतीय के संपादन में कुछ समय के लिए हुआ। तत्पश्चात वर्ष 1997 में त्रैमासिक पत्रिका पुरवाई का प्रकाशन, डॉ पदमेश गुप्त के संपादन में शुरू हुआ जो अभी तक जारी है। हिन्दी के लिए पूर्णतः समर्पित इस पत्रिका ने ब्रिटेन के हिन्दी रचनाकारों को एक मंच दिया। इस बीच, भारतीय उच्चायोग की छमाही पत्रिका भारत भवन का प्रकाशन भी शुरू हुआ जो रुक-रुककर जारी है। श्रीमती शैल अग्रवाल ने लेखनी नामक एक मासिक वैब पत्रिका का प्रकाशन भी वर्ष 2008 से प्रारंभ किया है।

साहित्यिक रचनाओं में पहली प्रकाशित रचना डॉ सत्येन्द्र श्रीवास्तव की है मिसेज जोन्से और उनकी वह गली। यह एक लंबी कविता है। इसके बाद डॉ. निखिल कौशिक का काव्य संकलन- तुम लन्दन आना चाहते हो, वर्ष 1987 में प्रकाशित हुआ। सच तो यह है कि ब्रिटेन के प्रवासी रचनाकारों का कुल इतिहास लगभग 30 वर्ष का है जिसमें कि उनकी रचनाएँ पुस्तकाकार प्रकाशित हुई हैं। प्रकाशन की गति से देखें तो ब्रिटेन में हिन्दी साहित्य का भविष्य काफी उज्ज्वल दिखाई देता है। अभी तक ब्रिटेन में कुल 106 काव्य संग्रह, 12 उपन्यास, 06 नाटक एकांकी, 06 निबंध जीवनियाँ, 07 यात्रावृत्त संस्मरण, 36 कहानी संग्रह, इतिहास दर्शन पर 05 ग्रन्थ, शोध हिन्दी् शिक्षण विविध ग्रन्थों के रूप में कुल 25 पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है।

ब्रिटेन के प्रमुख रचनाकारों में शामिल हैं- डॉ सत्येन्द्र श्रीवास्तरव, श्री प्राण शर्मा, श्रीमती उषा राजे सक्सेना, डॉ कृष्ण कुमार, श्री तेजिन्दर शर्मा, डॉ. कविता वाचक्नवी, डॉ निखिल कौशिक, श्री मोहन राणा, श्रीमती दिव्या माथुर, (स्वर्गीय) डॉ गौतम सचदेव, डॉ पद्मेश गुप्ता, श्री महेन्द्र दवेसर दीपक, श्री रमेश पटेल, श्रीमती शैल अग्रवाल, श्री भारतेन्दु विमल, श्रीमती उषा वर्मा, श्रीमती कादम्बरी मेहरा, श्रीमती पुष्पा भार्गव, श्रीमती विद्या मायर, श्रीमती कीर्ति चैधरी, श्रीमती प्रियम्वदा मिश्रा, श्रीमती अरुणा सभरवाल, श्रीमती श्यामा कुमार, डॉ इन्दिरा आनंद, श्री वेद मित्र मोहला, श्रीमती नीना पॉल, श्री नरेश अरोड़ा, श्रीमती अचला शर्मा, श्रीमती चंचल जैन, श्रीमती स्वर्ण तलवाड़, डॉ. कृष्ण कन्हैया, श्रीमती जय वर्मा, श्री धर्मपाल शर्मा, श्री सुरेन्द्रनाथ लाल, श्री रमेश वैश्या मुरादाबादी, श्री सोहन राही, श्रीमती रमा जोशी, डॉ. श्रीपति उपाध्याय, श्री एस. पी. गुप्ता, श्री जगभूषण खरबन्दा, श्री यश गुप्ता, श्री जे एस नागरा, श्री मंगत भारद्वाज, श्री जगदीश मित्र, श्री रिफत शमीम, श्री इस्माइल चुनारा, श्रीमती तोषी अमृता, श्रीमती राज मोदगिल, श्रीमती उर्मिल भारद्वाज, श्रीमती निर्मल परींजा आदि। पहले माड्यूल में इन्हीं को आधार बनाकर अध्यापन कार्य किया जाएगा.

  • सामाजिक-राजनीतिक समस्याओं के प्रति जागरूकता |
  • भारतीय संस्कृति और भाषा से रूबरू कराता है |
  • नये मूल्यों की स्थापना |


माड्यूल -2प्रवासी साहित्य का कथासाहित्य

प्रवासी हिंदी कथा साहित्य निश्चित रूप से कथानक, शैली और शिल्प की दृष्टिसे भिन्न और विशिष्ट पहचान रखता है। उपर्युक्त देशों में रचित हिंदीसाहित्य स्थानीय परिवेशजनित साहित्य है जिसमें उस देश और काल की स्थितियोंका चित्रण होता है। हर देश में सामाजिक नियम, आचार संहिता, जीवन पद्धति उसदेश की संस्कृति और परंपराओं से बँधे होते हैं। लेखक अपने परिवेश में जनितसमस्याओं, स्त्री-पुरुष संबंधों, वैयक्तिक मनोदशाओं का चित्रण निजी शैलीमें करता है।

विदेशों में रचित हिंदी कथा साहित्य कई अर्थों में भिन्न है।इसमें स्थानीयता के तत्व प्रधान होते हैं, किन्तु मानवीय संवेदनाएँ देश कालकी सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं इसीलिए प्रेम, राग, विराग जसई संवेदनाओंकी अभिव्यक्ति प्रवासी साहित्य में उसी प्रकार दिखाई देती है जैसी किसामान्य भारतीय साहित्य में। विदेशी समाज में विदेशी सभ्यता और संस्कृति केमानदंडों के बीच जीवन बिताते हुए भारतीय आचार-विचार, राति-रिवाज में पलकरबड़े होकर, रोज़गार के लिए विदेशों में बसने के उपरांत विदेशी जगत केनीति-नियमों के साथ टकराहट की स्थिति उत्पन्न होती है, जो कि स्वाभाविक है।इन स्थितियों से निबटाकर जीवन में सामंजस्य और संतुलन बनाकर जीवन को सुखीबनाना, एक गंभीर चुनौती है। पश्चिमी सामाजिक परिवेश में स्त्री-पुरुषसंबंधों तथा दाम्पत्य संबंधों की अनिश्चितता बहुचर्चित एवं बहुचित्रित विषयहै। प्रवासी हिंदी कथा साहित्य भी मूल रूप से स्त्री केन्द्रित ही है जोकि स्त्री की सार्वभौमकिता को रेखांकित करता है। प्रवासी कथा साहित्य की एकऔर विशेषता, स्त्री कथाकारों की बहुलता और प्रधानता है। अमरीका, ब्रिटेन, केनेडा आदि देशों में हिंदी कथा साहित्य के सृजन में भारत की भाँति महिलालेखन महत्वपूर्ण है। इन स्थितियों के साथ प्रवासी रचनाकार भारतीयपरिस्थितियों से भी असंपृक्त नहीं रह सकते।

निर्धारित पाठ

  • कहानी
  • सांकल/ जकिया जुबेरी
  • देह की कीमत/ तेजेंद्र शर्मा
  • वे चार पराठे/ अरुणा सभरवाल
  • थोड़ी देर और/ शैलजा सक्सेना
  • पिंजरा/ नीलम मलकानिया
  • नमस्ते/ पूर्णिमा वर्मन
  • लकीर/ महेंद्र दवेसर


उपन्यास-

  • रामदेव धुरंधर/‘पथरीला सोना’
  • लाल पसीना/ अभिमन्यु
  • अनतसुषम बेदी/ हवन


माड्यूल -3 प्रवासी कविता : संवेदना और शिल्प

भारतके बाहर आज सारी दुनिया में भारतवंशी फैले हुए हैं. इनके हिंदी रचनाकर्मको आज प्रवासी हिंदी साहित्य के रूप में जाना जाता है. यदि अन्य विधाओं कोछोड़ भी दें और केवल प्रवासी रचनाकारों की हिंदी कविता पर ही ध्यान दें, तोपता चलता है कि ऐसे कवियों की संख्या सैकड़ों में है. यहाँ हम स्थालीपुलाकन्याय से केवल कुछ कवियों की चुनिंदा कविताओं के अनुशीलन द्वारा उनके मुख्यसरोकारों को रेखांकित करने का प्रयास करेंगे.

निर्धारित पाठ

कविताएँ-

आओ न ! बैठो न !/ राज हिरामन (मॉरीशस)अहंकार/ अनीता वर्मा (चीन)शायद एक चाह / अनीता कपूर (अमेरिका)रोशनी की इबारत/गुलशन मधुर (अमेरिका)सब कुछ चाहिए/अनिल पुरोहित (कनाडा)अपनी राह से/ पुष्पिता अवस्थी (नीदरलैंड)खड़िया/ मोहन राणा (ब्रिटेन)यह घड़ी / सत्येन्द्र श्रीवास्तव(ब्रिटेन)

माड्यूल - 4

प्रवासी साहित्य की अन्य विधाएँ

प्रवासी साहित्य भारतीय एवं पाश्चात्य संस्कृति का समन्वय है. कविता, कहानी, उपन्यास के आलावा अन्य साहित्यिक विधाओं में भी रचनाएं लिखी जा रही हैं | इसलिए इस मोड्यूल अन्य साहित्यिक विधाओं जैसे आलोचना, आत्मकथा, रेखाचित्र, संस्मरण, यात्रा वृत्तान्त आदि का अध्ययन किया जाएगा|

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची:

  • वर्तमानसाहित्य’, कुंवरपाल सिंह, नमिता सिंह (संपादक), जनवरी-फरवरी-20065
  • कमल 2- कमल किशोर गोयनका, विश्व हिंदी रचना, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद्, नई दिल्ली-2003
  • प्रवासी साहित्य : जोहान्सबर्ग से आगे, प्रधान संपादक, डॉ. कमल किशोरगोयनका, प्रकाशक-विदेश मंत्रालय, भारत सरकार, साउथ ब्लॉक, नई दिल्ली, संस्करण-2015
  • डॉ.कमल किशोर गोयनका, हिंदी का प्रवासी साहित्य, प्रथम संस्करण 2011, अमित
  • 10 वॉ विश्व हिन्दी सम्मेलन (स्मारिका)
  • अप्रवासी, मंजुकपूर , रैण्डमहाउसइंडिया , नोएडा , 2009
  • उड़नेसेपेशतरमहेन्द्रभल्ला , राजकमलप्रकाशन , नईदिल्ली , 2010
  • गाथाअमरबेलकीसुषमबेदी , नेशनलपब्लिशिंगहाउस , नईदिल्ली , 2015
  • दिशाएँबदलगईनरेशभारतीय , राजपालएंडसंस , दिल्ली , 2014
  • पथरीलासोनारामदेवधुरंधर , हिंदीबुकसेण्टर , नईदिल्ली , 2012
  • पूछोइसमाटीसेरामदेवधुरन्धर , नेशनलपब्लिशिंगहाउस , नईदिल्ली , 2012
  • लौटनासुषमबेदी , परागप्रकाशन , दिल्ली , 2011
  • हवनसुषमबेदी , परागप्रकाशन , दिल्ली , 2010


Assessment Details with weightage:

Assessment 1: 25%

प्रवासी साहित्य की अवधारणा व इतिहासकी समझ का मूल्यांकन।

Assessment 2: 25%

प्रवासी साहित्य के कथा साहित्य की कृतियों का मूल्यांकन।

Assessment 3: 25%

प्रवासी साहित्य की काव्य कृतियों का मूल्यांकन।

Assessment 4: 25%

अन्य प्रवासी साहित्य की समझ का मूल्यांकन।