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दिल्ली और साहित्य

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Course Type Course Code No. Of Credits
Foundation Elective NA 4

Semester and Year Offered: WS2021

Course coordinator and team  HINDI FACULTY

Email of course coordinator: 

Pre-requisites: None

Does the course connect to, build on or overlap with any other courses offered in AUD?

इस कोर्स का सम्बन्ध स्नातक स्तर पर फाउंडेशन कोर्स हिंदी (FH-3 )और हिंदी के ही अन्य कोर्सेस से है |वहां हम साहित्य के साथ सिनेमा की भी बात करते है लेकिन यहाँ विस्तार पूर्वक साहित्य और सिनेमा के गहरे संबंधो की पड़ताल की जाएगी | इसके अतिरिक्त स्कूल ऑफ कल्चर एंड क्रिएटिव एक्सप्रेशन (SCCE) के साहित्यिक कलाओं में परास्नातक के तहत पढ़ाए जाने वाले विभिन्न प्रश्नपत्रों से इसका घनिष्ठ सह-सम्बंध है।Specific requirements on the part of students who can be admitted to this course: (Pre-requisites; prior knowledge level; any others – please specify) NoneNo. of students to be admitted (with justification if lower than usual cohort size is proposed): 40-45Course scheduling (semester; semester-long/half-semester course; workshop mode; seminar mode; any other – please specify):How does the course link with the vision of AUD?
इस कोर्स का सम्बन्ध स्नातक स्तर पर फाउंडेशन कोर्स हिंदी (FH-3 )और हिंदी के ही अन्य कोर्सेस से है |वहां हम साहित्य के साथ सिनेमा की भी बात करते है लेकिन यहाँ विस्तार पूर्वक साहित्य और सिनेमा के गहरे संबंधो की पड़ताल की जाएगी | इसके अतिरिक्त स्कूल ऑफ कल्चर एंड क्रिएटिव एक्सप्रेशन (SCCE) के साहित्यिक कलाओं में परास्नातक के तहत पढ़ाए जाने वाले विभिन्न प्रश्नपत्रों से इसका घनिष्ठ सह-सम्बंध है।How does the course link with the specific programme(s) where it is being offered?
साहित्य समाज का दर्पण माना जाता है जो भी कुछ समाज में घट रहा है उसे साहित्य में स्थान मिलता है साहित्य अपने पाठकों को अपने परिवेश के प्रति संवेदनशील बनता है |सिनेमा एक प्रभावशाली माध्यम है | सिनेमा भी अपने दर्शक को जागरूक करता है | उसकी यही जागरूकता समाज और उसमे व्याप्त रुचियों को परिष्कृत करता है जो समाज के विकास में सहायक है | ऐसे में यह कोर्स विधार्थियों में साहित्य और सिनेमा के प्रति एक समझ विकसित करने का कार्य करेगा |

Course Details:

Summary: यह एक एम् ए का इलेक्टिव कोर्स है | जिसे एक सेमेस्टर में पढ़ाया जाएगा तो इसमें विस्तारपूर्वक अध्ययन करवाया जाना अपेक्षित है | इस कोर्स के माध्यम से सिनेमा और साहित्य के अंतर्संबंधों को समझाने का प्रयास किया जाएगा | भारत एक बहुसांस्कृतिक ,बहुभाषिक देश है इसलिए यहाँ सिनेमा एक महत्वपूर्ण कड़ी का काम करता दिखाई पड़ता है | फिर चाहे सिनेमा का मूल चरित्र मनोरंजनप्रधान हो यह अपनी लोकप्रियता के कारण समाज परिवर्तन, जागरूकता में अहम् भूमिका निभाता है ,यही नहीं साहित्यकारों ने भी सिनेमा लेखन में एक अहम् भूमिका निभायी है ,इसलिए साहित्य आधारित सिनेमा कौन कौन सा है उसपर भी बात की जाएगी | और क्या साहित्य आधारित सिनेमा उतना ही प्रभावशाली रहा जितना के वो साहित्य में था इसे भी देखने का प्रयास किया जाएगा जिसके केंद्र में साहित्य आधारित सिनेमा को ही रखा जाएगा | सिनेमा की समाज में अहम् भूमिका है | इसमें उन फिल्मों को भी केंद्र में रखा जाएगा जो साहित्य की किसी कृति पर आधारित नही है लेकिन समाज के बदलते स्वरूप को दिखाने में सक्षम है | इसी लोकप्रिय सिनेमा के माध्यम से बदलते हुए समाज को सूक्षमता से देखा जा सकता है | फिल्मों और साहित्य के केंद्र में धार्मिक सद्भाव ,अहिंसा,गरीबों के प्रति सहानुभूति जैसे महत्वपूर्ण भावों और मुद्दों की अभिव्यक्ति होती है| साथ ही साहित्य और सिनेमा पर जिन विचारधाराओं का प्रभाव लक्षित हुआ है उनके प्रति भी विधार्थी की समझ विकसित करना इस कोर्से का लक्ष्य होगा | इसके अतिरिक्त सिनेमा और साहित्य में भारतीय संस्कृति को किस प्रकार व्यक्त किया गया है जो मिली -जुली संस्कृति को परिभाषित करती है उसको भी समझने का प्रयास इस कोर्स के जरिये किया जाएगा |

b. Objectives.

विद्यार्थी को समाज और उसकी सरंचना से रु-बा-रु ।विद्यार्थियों को साहित्य और सिनेमा के संबंधों से अवगत करानासाहित्य और सिनेमा की ताकत से परिचय कराना |समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप सम्वेदनशीलता विकसित करना तथा सामुदायिक स्तर पर लोगों की स्थिति में बेहतरी की कोशिशों में शामिल है|
Expected learning outcomes:

Overall structure (course organisation, rationale of organisation; outline of each module):

माड्यूल-1:

सिनेमा; एक सशक्त जनमाध्यम

सिनेमा जनसंचार का एक प्रभावशाली माध्यम है | मूक होने से सवाक् होने तक की इसकी यात्रा महत्वपूर्ण रही है | शुरूआती दौर में सिनेमा भारतीय मिथकों से प्रभावित रहा लेकिन धीरे धीरे समाज की समस्याओं को भी सशक्त प्रभावी ढंग से दिखलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता दिखाई पड़ता है | सिनेमा की यही विशेषता है कि वह अपने समय को लेकर संवाद करता है समस्याओं के प्रति जागरूक करता है | इसके बढ़ते दायरे के कारण यह एक लोकप्रिय माध्यम भी बनता चला गया | सिनेमा जीवन के यथार्थ के प्रति समझ पैदा करता ,यह समझ फिल्मों में दिखाए जाने वाले छोटे छोटे दृश्यों से पैदा होती है | यह भी सत्य है कि फिल्मों को देखकर जरुरी नहीं कि सभी दर्शकों पर एक ही जैसा प्रभाव पड़े बल्कि वह हर दर्शक के लिए नये पाठ का निर्माण करने में भी सक्षम दिखाई पड़ता है | किसी के लिए कोई फ़िल्म मात्र मनोरंजन का जरिया है तो किसी के लिए समाज की सोच परिवर्तन करने का सशक्त माध्यम है | जनमाध्यम के इस रूप ने समाज में पनप रही बीमार मानसिकताओं , अंधविश्वास,विद्रूपताओं ,खोखले मूल्यों को तोड़ने और नये मूल्य बनाने में अहम् भूमिका निभाई है | मुख्य रूप से इस मोड्यूल में इन बिन्दुओं पर बात की जाएगी |

सिनेमा को पढ़ने का तरीका क्या हो सकता है ,उसकी तकनीक भाषा आदि पर भी बात करके सिनेमा के स्वरुप को समझा जा सकता है |

  • सामाजिक ,राजनीतिक समस्याओं के प्रति जागरूकता |
  • भारतीय संस्कृति से रूबरू कराता है |
  • नये मूल्यों की स्थापना |


माड्यूल -2

साहित्य और सिनेमा का अंतर्संबंध

सिनेमा और साहित्य के संबंधो की लम्बी परम्परा रही | जो मूक फिल्मों के दौर से लेकर अब तक बनी हुई है | कई साहित्यिक कृतियों पर सफल- असफल फ़िल्में बनी हुई हैं | सफल और असफल का सवाल इसलिए खड़ा होता है क्योकि कई बार साहित्यिक कृति पाठक पर इतना गहरा प्रभाव छोडती है कि जब वह सिनेमा के रूप में चित्रित होती है तो वह वह उसके साथ तादात्मय स्थापित नही कर पाता इसलिए उसकी नजर में वह फ़िल्म जो साहित्यिक आधारित थी उसे असफल घोषित कर देता है | इसका कारण यही है कि सिनेमा और साहित्य अभिव्यक्ति के दो अलग अलग माध्यम है | जिसमें एक शब्दों के जरिये अपने पात्रों को पाठक के सामने रखता है तो दूसरा चित्रों के द्वारा अपने दर्शक के सामने आता है | इसलिए कुछ बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए इनके संबधो को समझना होगा |

जैसे किसी कृति को पढ़ते समय हम ठहर- ठहर कर उसके शब्दों के भावों को समझ सकने की प्रक्रिया से गुजरते है जबकि फ़िल्म देखते समय एक साथ इतने चित्र सामने होते है तो कुछ चित्र आँखों से ओझल से हो जाते है |साहित्यिक कृति को पढ़ते समय कल्पना शक्ति के सहारे अपने पात्र ,स्थान ,ख़ुद ही गढ़ लेते है किन्तु सिनेमा हमारी सामने मूर्त रूप में पात्रों आदि से रूबरू करवा देता है |
इस मोड्यूल में उन साहित्यिक कृतियों का अध्ययन अपेक्षित है जिन पर फिल्मे भी बनाई गयीं है |

निर्धारित पाठ

सद्गतितीसरी कसमयही सच हैनिर्मला

माड्यूल -3

साहित्य के फिल्मांतर और समस्याएं

साहित्य की भाषा और सिनेमा का तकनीकी पक्ष वास्तव में जब किसी कृति पर सिनेमा बनता है तो निर्देशक सिर्फ कहानी या उपन्यास के मूल भाव का अनुकरण मात्र करता इसलिए कई बार साहित्य पर आधारित जो भी सिनेमा बनता है वह साहित्य की की बारीकियों को पकड़ने में सक्षम होता है तो कई बार वह भावो की वैसी अभिव्यक्ति नहीं कर पाता | साहित्य में जितने विस्तार रूप से पढ़ सकते है सिनेमा में वह कथानक समयावधि में सीमित हो जाता है इसीलिए उसका संक्षित रूप ही सामने आ पाता है ,और कथानक का विस्तार न होने के कारण भावों का वैसा प्रभाव निकल कर नही आता जैसा साहित्य में होता है |

साहित्य की भाषा की अपनी महत्ता है, वो सिनेमा में आकर कुछ बोझिल हो जाती है ,सिनेमा परिवर्तन के साथ -साथ मनोरंजन का भी सशक्त माध्यम है | इसलिए सिनेमा की भाषा ऐसी रखने का प्रयास रहता है जो सभी की समझ में आ सके | कई बार तो सिनेमा में साहित्य की भाषा को सरल बना कर प्रस्तुत किए जाने की मज़बूरी भी होती है | क्योकि साहित्य शिक्षित वर्ग तक सीमित रहता है ,जहाँ भाषा की जटिलता पाठक के सामने समस्या नहीं बनती | | जबकि सिनेमा का दर्शक किसी भी आयु,वर्ग और श्रेणी का हो सकता है | इसलिए भाषा को इस अंदाज के साथ प्रस्तुत किया जाता है कि दर्शक के सामने उसे न समझने का प्रश्न न खड़ा हो सके |

भाषा अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण माध्यम है | जिस साहित्य की भाषा जितनी मजबूत होगी उसका साहित्य भी उतना ही अधिक प्रभावशाली होगा | इसी तरह सिनेमा की भी अपनी भाषा होती है जो विभिन्न संकेत, प्रतीक आदि सिनेमा को समझने में सहायता करते है | इसलिए इस माड्यूल में इन पक्षों से भी रु-ब-रु करवाया जाएगा |

इस मोड्यूल में यह देखने का प्रयास होगा के सिनेमाकार जब अपनी सृजनात्मक दृष्टि को व्यक्त करता है या साहित्य की किसी कृति पर फ़िल्म बनाता है तो वह अपने हिसाब से उसे मनोरंजक बनाने के लिए कुछ छूट ले जाता है | तो क्या साहित्य का प्रभाव वैसा ही रह जाता है या वह निर्देशक की एक स्वतंत्र फ़िल्म हो जाती है |

इस दृष्टि से भी उन फिल्मों का अध्ययन किया जा सकता है जिनकी कहानी पौराणिक ,मिथकीय पात्रों से मिलती है लेकिन उनकी समस्याएं आधुनिक युग की समस्याओं के रुप में सामने आती है | यही नहीं भारतीय संस्कृति से ओत-प्रोत सिनेमा भी किस प्रकार युवा पीढ़ी की दिशा निर्धारित करता है उसे भी देखने का प्रयास किया जा सकता है |

इस प्रकार निर्देशक की सर्जनात्मकता ही पुराने विषयों को नये रूपों में दर्शक के सामने लाने का प्रयास करती है | इस मोड्यूल में हम ऐसे सिनेमा को स्थान दे सकते है जिसका सम्बन्ध साहित्य से हो लेकिन हर बार वो नये रूप में सामने आ रहा हो | जैसे की देवदास फिल्म कई बार बनी लेकिन हर बार कुछ न कुछ निर्देशक ने अपनी सर्जनात्मकता को बनाए रखते हुए समय के हिसाब से बदलाव किए |

माड्यूल - 4

सिनेमा का अध्ययन

फ़िल्म माध्यम से निर्देशक जीवन की विभिन्न स्थितियों,व्यक्तियों,दृश्यों के बीच जाकर दर्शक तक अपनी पहुच बनाने का प्रयास करता है | उसकी पूरी कोशिश रहती है के वो फ़िल्म के ज़रिये उस समाज को इस तरह प्रस्तुत करे कि दर्शक उस फ़िल्म से ख़ुद को जुड़ा महसूस करे और अपने जीवन के यथार्थ को फ़िल्म के जरिये महसूस भी कर सके | इसलिए इस मोड्यूल में सिर्फ साहित्य आधारित फिल्मों का अध्ययन किया जायेगा | साहित्यिक कृतियों और उस पर आधारित सिनेमा ने जिन मुद्दों को उठाया है उनको आज के सन्दर्भ में भी देखने का प्रयास होगा | कुछ चर्चा हिंदी भाषा से अलग विभिन्न भाषाओँ के साहित्य को भी देखने का प्रयास रहेगा जिस पर सिनेमा भी बनाया गया है |

किन्ही दो साहित्य आधारित फिल्मों का अध्ययन

निर्धारित सिनेमा

  • तमस
  • निशांत
  • चरणदास चोर
  • सूरज का सातवां घोड़ा
  • आक्रोश
  • नौकर की कमीज

Contents (week wise plan with readings):

Week Plan/ Theme/ Topic Objectives Core Reading (with no. of pages) Additional Suggested Readings Assessment (weights, modes, scheduling)
1 सिनेमा जनमाध्यम के रूप -स्वरुप से परिचय कराना शुरूआती समय से जनमाध्यम के रूप में सिनेमा की क्या भूमिका रही ऐसे सवालों को केंद्र में रखा जायेगा 1.संचार माध्यम और पूंजीवादी समाज ,मुरली मनोहर प्रसाद ,ग्रन्थ शिल्पी,2006 पेज-1 2.सिनेमा पढने के तरीके ,विष्णु खरे,आनंद प्रकाशन,2010 1.जनमाध्यम और मास कल्चर ,जगदीश्वर चतुर्वेदी ,सारांश प्रकाशन,1995,पेज-104 2.जनमाध्यमों का मायालोक ,नॉम चाम्सकी ,ग्रन्थ शिल्पी 2000  
2 सिनेमा की  इतिहास यात्रा पर चर्चा   1.भारतीय सिनेमा का अंतःकरण,विनोददास,मेधा बुक्स, 2.सिनेमा के बारे में,कबीर नसरीन मुन्नी राजकमल प्रकाशन., 3.हिंदी सिनेमा का इतिहास ,संजीव श्रीवास्तव ,प्रकाशन विभाग,2004       30 प्रतिशत असाइनमेंट  
3 साहित्य और सिनेमा के संबंधों पर चर्चा   आपस में दोनों के अंतर्संबंधों की पड़ताल की कोशिश साथ ही  हिंदीसाहित्य की कृतियाँ जिन पर फ़िल्में भी बनी है उन फिल्मो की  स्क्रीनिंग आदि 1.सिनेमा और संस्कृति ,राही मासूम रजा,वाणी प्रकाशन 2.हिंदी सिनेमा का समाजशास्त्र ,जवरीमल्ल पारेख ,ग्रन्थ शिल्पी ,2006 सिनेमा की संस्कृति को समझने के लिए लेखको, निर्देशकों  के साक्षात्कारोंको आधार बनाना | 40 प्रतिशत का  टेस्ट  या तुलनात्मक अध्ययन करते हुए 3 हजार शब्दों में लेख |
4   कोर्स में लगी रचनाओं पर बातचीत साथ ही उन पर बनी फिल्मों पर बातचीत,उन दोनों के प्रस्तुतीकरण पर चर्चा आदि 1लोकप्रिय सिनेमा और सामजिक यथार्थ,जवरीमल्ल पारख ,अनामिका पब्लिशर्स कोर्से में लगी रचनाओं के साथ साथ अन्य रचनाओं पर भी बातचीत  
5 साहित्यिक कृतियाँ के प्रस्तुतीकरण की समस्याओं की चर्चा फ़िल्म स्क्रीनिग और पाठ को आधार बनाकर      
6 सद्गति कहानी और फिल्म रूपांतर की समस्या पर चर्चा फिल्मोंमेंदिखाएं गए पात्रो और कहानी में विद्यमान पात्रों का तुलनात्मक अध्ययन सद्गति,(कहानी)प्रेमचंद    
7 यही सच है कहानी और इसी पर बनी फिल्म पर चर्चा   यही सच है (कहानी)मन्नू भंडारी    
8 तमस,सूरज का सातवां घोडा --साहित्यक दृष्टि से अध्ययन        
9 सामानांतर सिनेमा और पापुलर सिनेमा पर बातचीत दोनों के बीच के सूक्ष्म अंतर को समझा जायेगा 1. ,भारतीय चित्रपट, महेंद्र मित्तल ,अलंकार  प्रकाशन,1975 1.कथाकार कमलेश्वर और हिंदी सिनेमा,उज्ज्वल अग्रवाल ,राजकमल प्रकाशन 2012  
10 सिनेमा में आये नये बदलावों को आज की फिल्मों के माध्यम से समझना       इसमें कुछ फ़िल्में ली जा सकती है जो अस्मिता (दलित ,स्त्री,आदि )के प्रश्नों से रु-बा-रु करवा सके सिनेमा;कल आज और कल ,विनोद भारद्वाज,वाणी प्रकाशन,2005   30 प्रतिशत प्रस्तुतिकरण
11 हिंदी भाषा से इतर  अन्य भाषाओँ विशेषकर बांग्ला भाषा की कृतियों (अनुवादित)का अध्ययन साथ ही विभिन्न साहित्य आधारित  फिल्मों का अध्ययन(देवदासपरिणीता आदि ) 1.समय और सिनेमा , विनोद भरद्वाज ,वाणी प्रकाशन 1994,    
12 मनोरंजन सिनेमा ‘; साहित्यक सिनेमा दोनों के उद्देश्यों ,दोनों के अंतर को समझना 1हिंदी सिनेमा बीसवीं से इक्कीसवी सदी तक,.प्रहलाद अग्रवाल ,साहित्य भण्डार ,2009 2.सिनेमा और हिंदी सिनेमा ,अरुणकुमार,राजस्थान पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस,2007    

Pedagogy:

Instructional strategies:

  • Special needs (facilities, requirements in terms of software, studio, lab, clinic, library, classroom/others instructional space; any other – please specify):
  • Expertise in AUD faculty or outside
  • Linkages with external agencies (e.g., with field-based organizations, hospital; any others)

Note:

Modifications on the basis of deliberations in the Board of Studies (or Research Studies Committee in the case of research programmes) and the relevant Standing Committee (SCAP/SCPVCE/SCR) shall be incorporated and the revised proposal should be submitted to the Academic Council with due recommendations.

Core courses which are meant to be part of more than one programme, and are to be shared across Schools, may need to be taken through the Boards of Studies of the respective Schools. The electives shared between more than one programme should have been approved in the Board of Studies of and taken through the SCAP/SCPVCE/SCR of the primary School.

In certain special cases, where a course does not belong to any particular School, the proposal may be submitted through SCAP/SCPVCE/SCR to the Academic Council.

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