Course Type | Course Code | No. Of Credits |
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Foundation Core | NA | 4 |
Semester and Year Offered: WS 2021
Course Coordinator and Team: Prof. Satyaketu Sankrit, Prof. Gopal Pradhan
Email of course coordinator:
Pre-requisites: None
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1. Does the course connect to, build on or overlap with any other courses offered in AUD?
बीए स्तर पर पढ़ाए जाने वाले हिंदी आधार पाठ्यक्रम [इलेक्टिव] और भारतीय व विश्व साहित्य [इलेक्टिव] शीर्षक कोर्सों से यह कोर्स कुछ हद तक जुड़ा हुआ है। एमए में प्रस्तावित यह कोर्स विद्यार्थियों को आधुनिक हिंदी कविता की गहन समझ विकसित करेगा।
2. Specific requirements on the part of students who can be admitted to this course:
(Pre-requisites; prior knowledge level; any others – please specify)
None
3. No. of students to be admitted (with justification if lower than usual cohort size is proposed):
45
4. Course scheduling (semester; semester-long/half-semester course; workshop mode; seminar mode; any other –please specify):
2st Semester
5. How does the course link with the vision of AUD?
आधुनिक हिंदी कविता का जन्म उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष के दौर में हुआ। यह कविता अपने आरम्भ से ही मानव मुक्ति, लोकतंत्र, सौंदर्य चेतना, न्यायपूर्ण समाज की आकांक्षा अपने भीतर समेटे रही है। इस कोर्स के अध्ययन के जरिये विद्यार्थी इन्हीं मानवीय मूल्यों से अवगत होंगे और उन्हें आत्मसात कर सकेंगे।
6. How does the course link with the specific programme(s) where it is being offered?
एमए हिंदी प्रोग्राम की मुकम्मल तस्वीर आधुनिक हिंदी कविता के बिना नहीं बन सकती इसलिए आधुनिक हिंदी कविता के अध्यापन के जरिये एमए हिंदी पाठ्यक्रम का न सिर्फ़ पूरा स्वरूप निर्मित होगा बल्कि यह विद्यार्थियों को नए क़िस्म के काव्य बोध प्रदान करेगा।
7. Course Details:
Summary:
यह पाठ्यक्रम हिंदी कविता में आधुनिकता के उदय की पृष्ठभूमि की चर्चा करने के साथ-साथ अवधारणा के रूप में आधुनिकता पर भी चर्चा करेगा। हिंदी साहित्य में आधुनिकता के उदय के समय के बारे में बहसें रही हैं। इस पाठ्यक्रम में कविताओं के जरिये ही आधुनिकता संबंधी इस बहस की यथासमय चर्चा की जायेगी। आधुनिक हिंदी के आरंभिक चरण की कविताओं और राष्ट्र की संकल्पना के अंतर्संबंधों का ज्ञान भी विद्यार्थियों को कराया जायेगा। हिंदी साहित्य के इतिहास में हम जैसे-जैसे समकालीनता की तरफ बढ़ते हैं काल विभाजनों की अवधि छोटी होती जाती है। भारतेंदु और द्विवेदी युग की कविताओं के राष्ट्रवादी स्वर के ठीक बाद हिंदी कविता में छायावाद एक निर्णायक मोड़ की तरह आता है। छायावादी कविताओं की स्वीकार्यता और अस्वीकार्यता की बहसों के बीच इस दौर के कवियों ने स्वयं भी अपनी कविताओं के पक्ष के आलोचनात्मक हस्तक्षेप किये। उत्तर-छायावादी काव्य का दौर राष्ट्रवाद की प्रखरता और ‘मौज-मस्ती’ के काव्य का दौर है। छायावाद के गर्भ से ही प्रगतिवाद की कविता के अंकुर फूटने लगे थे। भारत के उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष और वैश्विक परिदृश्य के बीच 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना में प्रगतिवाद को आधिकारिक तौर पर स्थापित कर दिया। इसी दौर में हिंदी कविता में ‘व्यक्ति’ और ‘समाज’ के बीच के अंतस्संबंधों और अंतर्विरोधों के बारे में भी बहस उठ खड़ी हुई। प्रयोगवाद ने स्वयं को ‘राहों के अन्वेषण’ की कविता कहा। यह पाठ्यक्रम विद्यार्थियों को आधुनिक हिंदी कविता के इन विविध काव्यात्मक पड़ावों की प्रतिनिधि कविताओं के जरिये इनके बीच की सैद्धंतिक बहसों की भी बानगी देगा।
Objectives:
आधुनिक हिंदी कविता राष्ट्रवाद से अपनी यात्रा शुरू करके विभिन्न अस्मिताओं तक की आवाज़ों से बनी है। इस दौर में अनेक साहित्यिक आंदोलन उभरे जो मूलतः काव्य आंदोलन थे। इस पाठ्यक्रम के अध्यापन के जरिये विद्यार्थियों में आधुनिक कविता के विभिन्न स्वरों की पहचान करने, मानवीय गरिमा व मानव मूल्यों के प्रति संवेदनशील रुख विकसित करने का प्रयत्न होगा।
Expected learning outcomes:
हिंदी आधुनिकता की काव्यात्मक अभिव्यक्ति के विश्लेषण में सक्षम बनाना।
काव्यात्मक सांस्कृतिक परम्परा का बोध पैदा करना और उसके विश्लेषण के औज़ार विकसित करना।
आधुनिक हिंदी कविता के घटक तत्वों का बोध कराना।
आधुनिक काव्यबोध के निर्मिति की प्रक्रिया का बोध कराना। Overall structure (course organisation, rationale of organisation; outline of each module):
Module One: आरंभिक आधुनिक हिंदी कविता
हिंदी की आरम्भिक कविता को भारतेन्दु युगीन काव्य और द्विवेदी युगीन कविता में विभाजित किया जाता है। ब्रज भाषा से अलग आधुनिकता का वहन करने वाली काव्यभाषा की खोज से शुरू हुआ हिंदी का आधुनिक काल एक तरफ तो रीतिकाल से आधुनिकता में संक्रमण का गवाह है, दूसरी तरफ वह नये राष्ट्र के निर्माण और परंपरा के पुनर्मूल्यांकन के काम को भी हाथ में लिए हुए है। इस मॉड्यूल में विद्यार्थी भारतेन्दु की विभिन्न किस्म की कविताओं के जरिये कविता के आधुनिकता में संक्रमण को समझ सकेंगे। साथ ही प्रिय प्रवास और भारत भारती के चुनिंदा अंशों के माध्यम से वे खड़ी बोली के काव्यभाषा के रूप में कदलने की छटपटाहट को भी चिन्हित कर पायेंगे। भारत भारती औपनिवेशिक राज के खिलाफ राष्ट्रीयता के उभार का महत्वपूर्ण काव्यात्मक दस्तावेज है, इस मॉड्यूल में विद्यार्थी इस काव्य के विश्लेषण के औजार विकसित कर सकेंगे।
पाठ:
- भारतेन्दु हरिश्चंद (कवित्त, मुकरियां और गजलें), हरिऔध (प्रिय प्रवास के चुनिंदा अंश), मैथिली शरण गुप्त (भारत भारती से चुनिंदा अंश)
- Module Two: छायावाद और उसका विस्तार
बीसवीं शताब्दी का दूसरा दशक बीतते-बीतते काव्यभाषा के रूप में खड़ी बोली का स्वरूप स्थिर हो चुका था। छायावाद के आगमन ने काव्यभाषा के बतौर हिंदी की सामर्थ्य को स्थापित कर दिया। छायावादी काव्य के पश्चिम के रोमांटिक काव्य से लेकर बांग्ला के रहस्यवाद से प्रभावित होने की बात पर आलोचकों में बहसें होती रही हैं। इसके अलावा छायावादी काव्य को स्वाधीनता के काव्य से लेकर आत्मकेन्द्रित काव्य तक की परस्पर विरोधी कोटियों में व्याख्यायित किया जात रहा है। छायावादी काव्य का बहुत गहरा कविता की भारतीय परंपरा और इतिहास से भी है। इस मॉड्यूल में छायावाद के प्रतिनिधि कवियों (जयशंकर प्रसाद, निराला, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी) की कविताओं के अध्ययन के जरिये विद्यार्थी छायावादी काव्य के वैशिष्ट्य से परिचित हो सकेंगे। छायावाद के आखिरी पड़ाव के आस-पास ही रामधारी सिंह दिनकर और हरिवंश राय बच्चन की कवितायें प्रकाशित होती हैं। ये कवितायें अपने मिजाज में छायावाद से अलग तेवर की हैं लेकिन उनका भावबोध छायावाद से बहुत कुछ साझा भी करता है। इस मॉडयूल में विद्यार्थी रामधारी सिंह दिनकर और बच्चन की चुनिंदा कविताओं के जरिये छायावादोत्तर काव्य से परिचित हो सकेंगे।
पाठ:
जयशंकर प्रसाद (कामायनी श्रद्धा सर्ग), निराला (राम की शक्तिपूजा, सरोज स्मृति व चुनिन्दा गीत), सुमित्रानंदन पंत (चुनिंदा कवितायें), महादेवी वर्मा (चुनिंदा कवितायें), रामधारी सिंह दिनकर (रश्मिरथी) और हरिवंशराय बच्चन (मधुशाला से चुनिंदा रुबाइयां), सुभद्रा कुमारी चौहान (चुनिन्दा कवितायें)
Module Three: प्रगतिवाद और प्रयोगवाद
छायावाद के कवियों विशेषकर, निराला और पंत की कविताओं में प्रगतिवादी कविता के सूत्र देखे जा सकते हैं। प्रगतिवाद की कविता ने हिंदी कविता का मुंह गांव के उस हिस्से की ओर मोड़ दिया जो अभी तक हिंदी कविता में केवल अपने रूमानी स्वरूप में ही मौजूद था। जाहिर है इससे कविता की भाषा भी बड़े बदलावों से गुजरी। प्रगतिवाद के सभी कवि अपनी विशिष्टता में एक दूसरे से भिन्न हैं किन्तु उनके भावबोध में आपसी संगति है। इस मॉड़यूल में विद्यार्थी प्रगतिवाद के प्रतिनिधि कवियों की कविताओं के अध्ययन के क्रम में विद्यार्थी प्रगतिवादी काव्य की व्यापकता और इसकी बहुस्वरीयता से परिचित हो सकेंगे। सामाजिकता और वैयक्तिकता के अंतर्संबंधों के नुक्ते से प्रयोगवादी कविता लगातार प्रगतिशील कविता से बहस करती हुई दिखायी पड़ती है। इस मॉडयूल में प्रयोगवादी कविताओं के अध्ययन के जरिये विद्यार्थी इन बहसों से परिचित होने के साथ-साथ प्रयोगवादी कवियों के काव्य प्रयोगों से भी परिचित होंगे।
पाठ:
त्रिलोचन (नगई महरा), नागार्जुन (हरिजन गाथा, प्रेत का बयान), केदारनाथ अग्रवाल (हे मेरी तुम, ), शमशेर (टूटी हुई बिखरी हुई, लेकर सीधा नारा), मुक्तिबोध (अंधेरे में, ब्रह्मराक्षस), अज्ञेय (असाध्य वीणा, कलगी बाजरे की)
Module Four: नयी कविता और उसके बाद
प्रगतिवादी कविता के भीतर से ही नयी कविता का उभार हुआ। नयी कविता ने मूल्यांकन के पुराने प्रतिमानों को नकारने के साथ नये प्रतिमानों की मांग रखी। कविता में लघु मानव को प्रतिष्ठित करने के प्रयास इसी दौर में तेज हुए। नई कविता के बाद की कविता में स्वरों की इतनी विविधता और कवियों की सैद्धांतिक धारणाओं में इतनी भिन्नता है कि इन्हें किसी एक कोटि के भीतर नहीं रखा जा सका। आपातकाल, जयप्रकाश नारायण का आंदोलन और नक्सलबाड़ी आंदोलन की छाप इस दौर की कविताओं पर बहुत स्पष्ट मौजूद है। इस मॉड्यूल में विद्यार्थी इस दौर के कवियों की कविताओं का अध्ययन करने के क्रम में उनकी वैचारिक प्रतिबद्धताओं और इन प्रतिबद्धताओं के उनकी कविताओं में प्रतिफलन को समझ सकेंगे।
पाठ:
श्रीकांत वर्मा (मगध), रघुवीर सहाय (आत्महत्या के विरुद्ध, आपकी हंसी), सर्वेश्वर दयाल सक्सेना (कुआनो नदी और भेडि़या श्रृंखला की कवितायें), राजकमल चौधरी (मुक्ति प्रसंग), भवानी प्रसाद मिश्र (सतपुड़ा के जंगल, गीत फरोश), शकुन्त माथुर (चुनिन्दा कवितायें)
Contents (week wise plan with readings):
Week | Plan/ Theme/ Topic | Objectives | Core Reading (with no. of pages) | Additional Suggested Readings | Assessment (weights, modes, scheduling) |
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1 | भारतेंदुहरिश्चंद | हिंदी-ब्रजकविताकेदोआबेकीसमझविकसितकरना। | कवित्त, मुकरियांऔरग़ज़लें | भारतेंदुसमग्र, सम्पादक: हेमंतशर्मा | |
2 | अयोध्यासिंहउपाध्यायहरिऔध | आधुनिकहिंदीखड़ीबोलीकेमहाकाव्यात्मकप्रयासकापरिचय। | प्रियप्रवासकेचुनिंदाअंश | प्रियप्रवास, अयोध्यासिंहउपाध्यायहरिऔध | |
3 | मैथिलीशरणगुप्त | राष्ट्रकेसवालऔरकवितासेउसकेसम्बंधकीपड़ताल। | भारतभारतीसेचुनिंदाअंश | भारतभारती, मैथिलीशरणगुप्त | 25%, टेकहोमअसाइनमेंट |
4 | जयशंकरप्रसाद, निराला | सभ्यतासमीक्षाऔरव्यक्तिवत्ताकाउदय | कामायनीश्रद्धासर्ग, रामकीशक्तिपूजा, सरोजस्मृतिवचुनिन्दागीत | कामायनी, जयशंकरप्रसाद, रागविराग, सम्पादक: रामविलासशर्मा | |
5 | सुमित्रानंदनपंत, महादेवीवर्मा | छायावादीरूमानऔररहस्यवादकापरिचय। | परिवर्तन, नौकाविहार, जागतुझकोदूरजाना, कौनतमकेपार | पंतसहचर, सम्पादक: अशोकवाजपेयीवअपूर्वानंद, महादेवीसंचयिता, सम्पादक: अशोकवाजपेयीवनिर्मलाजैन | |
6 | रामधारीसिंहदिनकर, हरिवंशरायबच्चन, वसुभद्राकुमारीचौहान | अतीतकामूल्यांकन, जीवनकीमस्तीऔरकाव्यमेंराष्ट्रीयचेतनाकीपड़ताल। | रश्मिरथीकेचुनिंदाअंश, मधुशालासेपाँचछंदवजलियाँवालाबाग़मेंबसंतऔरसमर्पण | मधुशाला, हरिवंशरायबच्चन, रश्मिरथी, रामधारीसिंहदिनकर, त्रिधारा, सुभद्राकुमारीचौहान | 25%, क्लाससेमिनार |
7 | त्रिलोचन, नागार्जुन | कवितामेंमेहनतकशकीधमकऔरसत्ताकीआलोचनाकेकाव्यात्मकरूपोंकीपड़ताल। | नगईमहरा, हरिजनगाथा, प्रेतकाबयान | प्रतिनिधिकविताएँ, त्रिलोचन, प्रतिनिधिकविताएँ, नागार्जुन | |
8 | केदारनाथअग्रवालवशमशेरबहादुरसिंह | दाम्पत्यप्रेमव ऐंद्रियताकीसमझविकसितकरना। | हेमेरीतुम, टूटीहुईबिखरीहुई, लेकरसीधानारा | केदारनाथअग्रवालरचनासंचयन, सम्पादक: ज्योतिषजोशी, प्रतिनिधिकविताएँ, शमशेरबहादुरसिंह | |
9 | मुक्तिबोधवअज्ञेय | मध्यवर्गकीकाव्यात्मकअवस्थिति, आत्मालोचन, व्यक्तिवसमाजकेसमाजकेसम्बंधकीपड़ताल। | अंधेरेमें, ब्रहमराक्षस, असाध्यवीणा, कलगीबाजरेकी | प्रतिनिधिकविताएँ, मुक्तिबोध, प्रतिनिधिकविताएँ, अज्ञेय | 25%, क्लासटेस्ट |
10 | श्रीकांतवर्मा, रघुवीरसहाय | लोकतंत्रऔरउसपरख़तरोंकीशिनाख्त। | मगध, आत्महत्याकेविरुद्ध, आपकीहँसी | प्रतिनिधिकविताएँ, श्रीकांतवर्मा, प्रतिनिधिकविताएँ, रघुवीरसहाय | |
11 | सर्वेश्वरदयालसक्सेना, राजकमलचौधरी | मोहभंगऔरविद्रोहकीकाव्यात्मकअभिव्यक्तिकीसमझविकसितकरना। | कुवानोनदी, भेड़िया, मुक्तिप्रसंग | प्रतिनिधिकविताएँ, सर्वेश्वर, मुक्तिप्रसंग, राजकमलचौधरी | |
12 | भवानीप्रसादमिश्र, शकुंतमाथुर | सरलताकासौंदर्यऔरस्त्रीस्वरकीकाव्यात्मकअभिव्यक्तिकीसमझविकसितकरना। | सतपुड़ाकेजंगल, गीतफ़रोश, दोपहरी, इतनीरातगए | प्रतिनिधिकविताएँ, भवानीप्रसादमिश्र, दूसरासप्तक, संपादक: अज्ञेय | 25%, क्लासटेस्ट |
8. Pedagogy:
Instructional strategies:
माड्यूल्स में शामिल पाठों का अध्यापन करते हुए आनुषांगिक प्रसंगों से विद्यार्थियों को परिचित कराने के लिए कक्षा में पाठ के विश्लेषण के साथ बहस-मुबाहिसा संचालित किया जाएगा। इन पाठों की अंतरअनुशासनिकता को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय में उपलब्ध या बाहर के विद्वानों के अतिथि व्याख्यान भी कराए जाने अपेक्षित होंगे।
Special needs (facilities, requirements in terms of software, studio, lab, clinic, library, classroom/others instructional space; any other – please specify): Class room and LibraryExpertise in AUD faculty or outside AUD facultyLinkages with external agencies (e.g., with field-based organizations, hospital; any others) None Signature of Course Coordinator(s)
Note:
Modifications on the basis of deliberations in the Board of Studies (or Research Studies Committee in the case of research programmes) and the relevant Standing Committee (SCAP/SCPVCE/SCR) shall be incorporated and the revised proposal should be submitted to the Academic Council with due recommendations.Core courses which are meant to be part of more than one programme, and are to be shared across Schools, may need to be taken through the Boards of Studies of the respective Schools. The electives shared between more than one programme should have been approved in the Board of Studies of and taken through the SCAP/SCPVCE/SCR of the primary School.In certain special cases, where a course does not belong to any particular School, the proposal may be submitted through SCAP/SCPVCE/SCR to the Academic Council.
Recommendation of the School of Studies:
Suggestions: